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मई की निर्वाचित पुस्तक
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सप्ताह की पुस्तक
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हिन्दी भाषा की उत्पत्ति महावीर प्रसाद द्विवेदी रचित हिंदी भाषा संबंधी हिंदी की पहली पुस्तक है जिसका प्रकाशन १९२५ ई॰ में प्रयाग के इंडियन प्रेस, लिमिटेड द्वारा किया गया था।


"हिन्दी भाषा की उत्पत्ति का पता लगाने और उसका थोड़ा भी इतिहास लिखने में बड़ी-बड़ी कठिनाइयाँ हैं; क्योंकि इसके लिए पतेवार सामग्री कहीं नहीं मिलती। अधिकतर अनुमान ही के आधार पर इमारत खड़ी करनी पड़ती है, और यह सबका काम नहीं। इस विषय के विवेचन में पाश्चात्य पण्डितों ने बड़ा परिश्रम किया है। उनकी खोज की बदौलत अब इतनी सामग्री इकट्ठी हो गई है कि उसकी सहायता से हिन्दी की उत्पत्ति और विकास आदि का थोड़ा-बहुत पता लग सकता है। हिन्दी की माता कौन है? मातामही कौन है? प्रमातामही कौन है? कौन कब पैदा हुई? कौन कितने दिन तक रही? हिन्दी का कुटुम्ब कितना बड़ा है? उसकी इस समय हालत क्या है? इन सब बातों का पता लगाना-और फिर ऐतिहासिक पता, ऐसा वैसा नहीं—बहुत कठिन काम है। मैक्समूलर, काल्डवेल, बीम्स और हार्नली आदि विद्वानों ने इन विषयों पर बहुत कुछ लिखा है और बहुत-सी अज्ञात बातें जानी हैं, पर खोज, विचार और अध्ययन से भाषाशास्त्र-विषयक नित नई बातें मालूम होती जाती हैं। इससे पुराने सिद्धान्तों में परिवर्तन दरकार होता है! कोई-कोई सिद्धान्त तो बिलकुल ही असत्य साबित हो जाते हैं। अतएव भाषाशास्त्र की इमारत हमेशा ही गिरती रहती है और हमेशा ही उसकी मरम्मत हुआ करती है।..."(पूरा पढ़ें)


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पूर्ण पुस्तकें

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आज भी खरे हैं तालाब अनुपम मिश्र के जल संरक्षण संबंधी निबंधों का संग्रह है। इसका प्रकाशन गांधी शांति प्रतिष्ठान, (नई दिल्ली) द्वारा २००४ ई॰ में किया गया था।

"⁠"अच्छे-अच्छे काम करते जाना" राजा ने कूड़न किसान से कहा था।
कूड़न, बुढ़ान, सरमन और कौंराई थे चार भाई। चारों सुबह जल्दी उठकर अपने खेत पर काम करने जाते। दोपहर को कूड़न की बेटी आती, पोटली में खाना लेकर।
⁠एक दिन घर से खेत जाते समय बेटी को एक नुकीले पत्थर से ठोकर लग गई। उसे बहुत गुस्सा आया। उसने अपनी दरांती से उस पत्थर को उखाड़ने की कोशिश की। पर लो, उसकी दरांती तो पत्थर पर पड़ते ही लोहे से सोने में बदल गई। और फिर बदलती जाती हैं इस लम्बे किस्से की घटनाएं बड़ी तेज़ी से। पत्थर उठाकर लड़की भागी-भागी खेत पर आती है। अपने पिता और चाचाओं को सब कुछ एक सांस में बता देती है। चारों भाइयों की सांस भी अटक जाती है। जल्दी-जल्दी सब घर लौटते हैं। उन्हें मालूम पड़ चुका है कि उनके हाथ में कोई साधारण पत्थर नहीं है, पारस है। वे लोहे की जिस चीज़ को छूते हैं, वह सोना बनकर उनकी आखों में चमक भर देती है।..."(पूरा पढ़ें)


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सहकार्य

इस माह शोधित करने के लिए चुनी गई पुस्तक:
  1. Kabir Granthavali.pdf ‎[९२१ पृष्ठ]
  2. जायसी ग्रंथावली.djvu ‎[४९८ पृष्ठ]
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रचनाकार
रचनाकार

जॉन स्टुअर्ट मिल (20 मई 1806 — 8 मई 1873) प्रसिद्ध सामाजिक, राजनैतिक तथा दार्शनिक चिंतक थे। विकिस्रोत पर उपलब्ध उनकी रचनाएँ:

  1. स्त्रियों की पराधीनता (1917), THE SUBJECTION OF WOMEN का हिंदी अनुवाद।
  2. उपयोगितावाद — (1924), Utilitarianism का हिंदी अनुवाद
रबीन्द्रनाथ ठाकुर
रबीन्द्रनाथ ठाकुर

रबीन्द्रनाथ ठाकुर या रबीन्द्रनाथ टैगोर (7 मई 1861 — 7 अगस्त 1941) नोबल पुरस्कार विजेता बाँग्ला कवि, उपन्यासकार, निबंधकार, दार्शनिक और संगीतकार हैं। विकिस्रोत पर उपलब्ध इनकी रचनाएँ:

  1. स्वदेश (1914), निबंध संग्रह
  2. राजा और प्रजा (1919), निबंध संग्रह
  3. विचित्र-प्रबन्ध (1924), निबंध संग्रह
  4. दो बहनें (1952), हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा अनूदित उपन्यास।

आज का पाठ

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संज्ञा कामताप्रसाद गुरु द्वारा रचित हिंदी व्याकरण का एक अध्याय है जिसका प्रकाशन सं॰ १९८४ में इडियन प्रेस, लिमिटेड "प्रयाग" द्वारा किया गया था।

"संज्ञा उस विकारी शब्द को कहते हैं जिससे प्रकृत किंवा कल्पित सृष्टि की किसी वस्तु का नाम सूचित हो, जैसे, घर, आकाश, गंगा, देवता, अक्षर, बल, जादू, इत्यादि।
(क) इस लक्षण में 'वस्तु' शब्द का उपयोग अत्यंत व्यापक अर्थ में किया गया है। वह केवल प्राणी और पदार्थं ही का वाचक नहीं है किंतु उनके धर्मों का भी वाचक है। साधारण भाषा मेंं 'वस्तु' शब्द का उपयोग इस अर्थ में नहीं होता; परंतु शास्त्रीय ग्रंथों में व्यवहृत शब्दों का अर्थं कुछ घटा-बढ़ाकर निश्चित कर लेना चाहिये जिससे उसमें कोई संदेह न रहे।..."(पूरा पढ़ें)

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