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ख्यात साहित्यकार नरेंद्र कोहली नहीं रहे, राष्ट्रपति, पीएम मोदी सहित साहित्य जगत में शोक

राम कथा पर लिखे गए अपने उपन्यासों से आधुनिक पीढ़ी के अपने समर्थकों के बीच 'आधुनिक तुलसीदास' के रूप में लोकप्रिय वरिष्ठ साहित्यकार नरेंद्र कोहली नहीं रहे. उनके निधन पर देश की जानीमानी हस्तियों राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, रक्षामंत्री और केंद्रीय मंत्री स्मृति इरानी सहित साहित्य जगत ने गहरा दुख जताया है.

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वरिष्ठ साहित्यकार नरेंद्र कोहलीः बस यादें शेष
वरिष्ठ साहित्यकार नरेंद्र कोहलीः बस यादें शेष

नई दिल्लीः राम कथा पर लिखे गए अपने उपन्यासों से आधुनिक पीढ़ी के अपने समर्थकों के बीच 'आधुनिक तुलसीदास' के रूप में लोकप्रिय वरिष्ठ साहित्यकार नरेंद्र कोहली नहीं रहे. उनके निधन पर देश की जानीमानी हस्तियों राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, रक्षामंत्री और केंद्रीय मंत्री स्मृति इरानी सहित साहित्य जगत ने गहरा दुख जताया है.

कोरोना संक्रमण के चलते पिछले कुछ दिनों से वह गंभीर रूप से बीमार थे. केंद्र सरकार के निर्देश पर उन्हें उच्चस्तरीय स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराई गई थी, जहां उनका इलाज भी चल रहा था. वह वेंटिलेटर पर भी रखे गए थे, पर तमाम चिकित्सकीय प्रयासों के बावजूद अंततः आज शाम उन्होंने इहलोक से विदा ले लिया.

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने शोक जताते हुए ट्वीट किया कि प्रख्यात साहित्यकार डॉ. नरेन्द्र कोहली के निधन से बहुत दुख हुआ. हिंदी साहित्य जगत में उनका विशेष योगदान रहा है. उन्होंने हमारे पौराणिक आख्यानों को आधुनिक परिप्रेक्ष्य में विश्व के समक्ष प्रस्तुत किया. पद्मश्री से सम्मानित श्री कोहली के परिवार और पाठकों के प्रति मेरी शोक संवेदना.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ट्वीट में लिखा, सुप्रसिद्ध साहित्यकार नरेंद्र कोहली जी के निधन से अत्यंत दुख पहुंचा है, साहित्य में पौराणिक और ऐतिहासिक चरित्रों के जीवंत चित्रण के लिए वे हमेशा याद किए जाएंगे, शोक की इस घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके परिजनों और प्रशंसकों के साथ हैं, ओम शांति!

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का ट्वीट था कि हिंदी के प्रख्यात साहित्यकार श्री नरेंद्र कोहली के निधन से मुझे गहरी वेदना की अनुभूति हुई है. उनके लेखन में उच्च कोटि की बौद्धिक क्षमता, प्रामाणिकता, रचनात्मकता और भारत की सांस्कृतिक विरासत के दर्शन होते थे. उनके निधन से हिंदी साहित्य में बहुत बड़ा शून्य निर्मित हुआ है. ॐ शांति!


केंद्रीय मंत्री स्मृति इरानी जो कई कार्यक्रमों में कोहली के साथ रहती रहीं ने अपनी संवेदना इन शब्दों में जाहिर की. साहित्य क्षेत्र के दिग्गज डॉ. नरेंद्र कोहली जी के निधन का दुःखद समाचार मिला. उनके निधन से साहित्य जगत को अपूरणीय क्षति हुई है. ईश्वर से उनकी आत्मा की शांति हेतु प्रार्थना करती हूँ.ॐ शांति!

पद्मश्री से सम्मानित कोहली जी के निधन पर साहित्य जगत में गहरा शोक है. साहित्यकार, गीतकार प्रसून जोशी ने लिखा-

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बड़े साहित्यकारों, पत्रकारों ने अपने ढंग से उन्हें याद किया है. ममता कालिया, उषा किरण खान, बलदेव भाई शर्मा, यतींद्र मोहन मिश्र, प्रेम जनमेजय, राहुल देव, लक्ष्मी शंकर वाजपेयी, दिविक रमेश, विनोद अनुपम, धीरेंद्र अस्थाना, अनंत विजय, प्रभात कुमार, मनीषा कुलश्रेष्ठ, वर्तिका नंदा, ललित लालित्य, प्रज्ञा पांडेय, निर्मला भुराड़िया, संजीव पालीवाल, डॉ ओम निश्चल, मनोज कुमार राय, रश्मि भारद्वाज आदि ने उनकी स्मृतियों को याद करते हुए उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की है.

ठीक से याद नहीं कि पहली बार उनकी किताबों से कब वास्ता हुआ था. जिन दिनों कुशवाहाकांत, गोर्की, प्रेमचंद, आचार्य चतुरसेन शास्त्री, शिवाजी सावंत, मनु शर्मा, रमाकांत रथ, अमृता प्रीतम, तोलस्तोय पढ़े जा रहे थे, उन्हीं दिनों कब कोहली जी की किताबें बीच में आ गईं, ठीक से कहना मुश्किल है. पर दिल्ली आने पर उनसे सीधी मुलाकात में तकरीबन तीन दशक लग गए वह भी 'साहित्य आजतक' के सिलसिले में.

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कोहली जी अपने विचारों में बेहद स्पष्ट, भाषा में शुद्धतावादी और स्वभाव से जितने कोमल थे, सिद्धांतों में उतने ही कठोर. उन्होंने लिखने के लिए अपनी अध्यापन की नौकरी छोड़ दी थी. भारतीय संस्कृति के प्रति अपनी गहरी आस्था के चलते अपने समर्थकों के बीच 'आधुनिक तुलसी' के रूप में लोकप्रिय कोहली को हिंदी साहित्य में 'महाकाव्यात्मक उपन्यास' विधा को प्रारंभ करने का श्रेय जाता है.

देश के पौराणिक एवं ऐतिहासिक चरित्रों पर उनके लेखन को दुनिया भर में सराहना मिली है. पौराणिक एवं ऐतिहासिक चरित्रों की गुत्थियों को सुलझाते हुए उनके माध्यम से आधुनिक समाज की समस्याओं के समाधान को प्रस्तुत करना कोहली की विशेषता है. हाल ही में नरेंद्र कोहली का जीवनानुभव 'समाज, जिसमें मैं रहता हूं' नाम से छपकर आया था, जिसमें भारतीय संस्कृति, परंपरा और पौराणिक आख्यानों के इस श्रेष्ठ रचनाकार का सामाजिक व पारिवारिक अनुभव शामिल था.

डॉ कोहली ने साहित्य की सभी प्रमुख विधाओं यथा उपन्यास, व्यंग्य, नाटक, कहानी एवं गौण विधाओं यथा संस्मरण, निबंध, पत्र के साथ ही आलोचनात्मक साहित्य में भी अपनी लेखनी चलाई और शताधिक ग्रंथों का सृजन किया. उनकी चर्चित रचनाओं में उपन्यास 'पुनरारंभ', 'आतंक', 'आश्रितों का विद्रोह', 'साथ सहा गया दुख', 'मेरा अपना संसार', 'दीक्षा', 'अवसर', 'जंगल की कहानी', 'संघर्ष की ओर', 'युद्ध' (दो भाग), 'अभिज्ञान', 'आत्मदान', 'प्रीतिकथा', 'बंधन', 'अधिकार', 'कर्म', 'धर्म', 'निर्माण', 'अंतराल', 'प्रच्छन्न', 'साधना', 'क्षमा करना जीजी!; कथा-संग्रह 'परिणति', 'कहानी का अभाव', 'दृष्टिदेश में एकाएक', 'शटल', 'नमक का कैदी', 'निचले फ्लैट में', 'संचित भूख'; नाटक 'शंबूक की हत्या', 'निर्णय रुका हुआ', 'हत्यारे', 'गारे की दीवार' आदि शामिल हैं.

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कोहली को शलाका सम्मान, साहित्य भूषण, उत्तरप्रदेश हिंदी संस्थान पुरस्कार, साहित्य सम्मान तथा पद्मश्री सहित दर्जनों पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है. आपका जन्म 6 जनवरी, 1940 को संयुक्त पंजाब के सियालकोट नगर में हुआ. प्रारम्भिक शिक्षा लाहौर में आरम्भ हुई और भारत विभाजन के पश्चात परिवार के जमशेदपुर चले आने पर वहीं आगे बढ़ी. उनकी प्रारम्भिक शिक्षा का माध्यम हिंदी न होकर उर्दू थी. कोहली ने दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी में स्नातकोत्तर और डाक्टरेट की उपाधि हासिल की. प्रसिद्ध आलोचक डॉ नगेंद्र के निर्देशन में उनका शोध प्रबंध 'हिंदी उपन्यास: सृजन एवं सिद्धांत' विषय पर था.

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