प्राचीन संस्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल
और अवशेष अधिनियम, 1958
(1958 का अधिनियम संख्यांक 24)
[28 अगस्त, 1958]
राष्ट्रीय महत्व के प्राचीन और ऐतिहासिक संस्मारकों तथा पुरातत्वीय स्थल और
अवेशेषों के परिरक्षण का, पुरातत्वीय उत्खननों के विनियमन का, और
रूपकृतियों, नक्काशी और अन्य ऐसी वस्तुओं के
संरक्षण का उपबन्ध
करने के लिए
अधिनियम
भारत गणराज्य के नवें वर्ष में संसद् द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो :-
प्रारंभिक
1. संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारम्भ-(1) यह अधिनियम प्राचीन संस्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 कहा जा सकेगा ।
[(2) इसका विस्तार संपूर्ण भारत पर है ।]
(3) यह उस तारीख को प्रवृत्त होगा, जिसे केन्द्रीय सरकार शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा नियत करे ।
2. परिभाषाएं-इस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो :-
(क) “प्राचीन संस्मारक" से कोई संरचना, रचना या संस्मारक या कोई स्तूप या दफनगाह या कोई गुफा, शैल-रूपकृति, उत्कीर्ण लेख या एकाश्मक जो ऐतिहासिक, पुरातत्वीय या कलात्मक रुचि का है और जो कम से कम एक सौ वर्षों से विद्यमान है, अभिप्रेत है, और इसके अन्तर्गत हैं-
(i) किसी प्राचीन संस्मारक के अवशेष,
(ii) किसी प्राचीन संस्मारक का स्थल,
(iii) किसी प्राचीन संस्मारक के स्थल से लगी हुई भूमि का ऐसा प्रभाग जो ऐसे संस्मारक को बाड़ से घेरने या आच्छादित करने या अन्यथा परिरक्षित करने के लिए अपेक्षित हो, तथा
(iv) किसी प्राचीन संस्मारक तक पहुंचने और उसके सुविधापूर्ण निरीक्षण के साधन;
(ख) “पुरावशेष" के अन्तर्गत है कम से कम एक सौ वर्षों से विद्यमान-
(i) कोई सिक्का, रूपकृति, हस्तलेख, पुरालेख या अन्य कलाकृति या कारीगरी का काम,
(ii) कोई वस्तु, पदार्थ या चीज जो किसी निर्माण या गुफा से विलग्न है,
(iii) कोई वस्तु, पदार्थ या चीज जो गत युगों के विज्ञान, कला, कारीगरियों, साहित्य, धर्म, रूढ़ियों, नैतिक आचार या राजनीति की दृष्टान्तस्वरूप है,
(iv) ऐतिहासिक रुचि की कोई वस्तु, पदार्थ या चीज, तथा
(v) कोई वस्तु, पदार्थ या चीज जिसका इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए पुरावशेष होना केन्द्रीय सरकार द्वारा, शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, घोषित किया गया है;
(ग) “पुरातत्व अधिकारी" से भारत सरकार के पुरातत्व विभाग का कोई ऐसा अधिकारी अभिप्रेत है, जो सहायक पुरातत्व अधीक्षक से निम्नतर पंक्ति का नहीं है;
(घ) “पुरातत्वीय स्थल और अवशेष" से कोई ऐसा क्षेत्र अभिप्रेत है, जिसमें ऐतिहासिक या पुरातत्वीय महत्व के ऐसे भग्नावशेष या परिशेष हैंया जिनके होने का युक्तियुक्त रूप से विश्वास किया जाता है, जो कम से कम एक सौ वर्षों से विद्यमान हैं, और इनके अंतर्गत हैं-
(i) उस क्षेत्र से लगी हुई भूमि का ऐसा प्रभाग जो उसे बाड़ से घेरने या आच्छादित करने या अन्यथा परिरक्षित करने के लिए अपेक्षित हो, तथा
(ii) उस क्षेत्र तक पहुंचने और उसके सुविधापूर्ण निरीक्षण के साधन;
[(घक) “प्राधिकरण" से धारा 20च के अधीन गठित राष्ट्रीय संस्मारक प्राधिकरण अभिप्रेत है;
(घख) “सक्षम प्राधिकारी" से केंद्रीय सरकार या राज्य सरकार के पुरातत्व निदेशक या पुरातत्व आयुक्त की पंक्ति से अनिम्न या समतुल्य पंक्ति का ऐसा अधिकारी अभिप्रेत है, जो इस अधिनियम के अधीन कृत्यों का पालन करने के लिए केंद्रीय सरकार द्वारा, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, सक्षम प्राधिकारी के रूप में विनिर्दिष्ट किया गया हो :
परन्तु केंद्रीय सरकार राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, धारा 20ग, धारा 20घ और धारा 20ङ के प्रयोजन के लिए भिन्न-भिन्न सक्षम प्राधिकारी विनिर्दिष्ट कर सकेगी ;
(घग) “निर्माण" से किसी संरचना या भवन का कोई परिनिर्माण अभिप्रेत है, जिसके अंतर्गत उसमें ऊर्ध्वाकार या क्षैतिजीय कोई परिवर्धन या विस्तारण भी है, किन्तु इसके अंतर्गत किसी विद्यमान संरचना या भवन का कोई पुनर्निर्माण, मरम्मत और नवीकरण या नालियों और जल-निकास संकर्मों तथा सार्वजनिक शौचालयों, मूत्रालयों और इसी प्रकार की सुविधाओं का निर्माण, अनुरक्षण और सफाई, या जनता के लिए जल के प्रदाय का उपबंध करने के लिए आशयित संकर्मों का निर्माण और अनुरक्षण या जनता के लिए विद्युत के प्रदाय और वितरण के लिए निर्माण या अनुरक्षण, विस्तारण, प्रबंध या जनता के लिए इसी प्रकार की सुविधाओं के लिए उपबंध नहीं हैं;]
(ङ) “महानिदेशक" से पुरातत्व-महानिदेशक अभिप्रेत है और इसके अंतर्गत केंद्रीय सरकार द्वारा महानिदेशक के कर्तव्यों का पालन करने के लिए प्राधिकृत कोई अधिकारी है;
(च) अपने व्याकरणिक रूपों और सजातीय पदों सहित- “अनुरक्षण" के अंतर्गत हैं किसी संरक्षित संस्मारक को बाड़ से घेरना, उसे आच्छादित करना, उसकी मरम्मत करना, उसे पुनरुद्धार करना और उसकी सफाई करना, और कोई ऐसा कार्य करना जो किसी संरक्षित संस्मारक के परिरक्षण या उस तक सुविधापूर्ण पहुंच सुनिश्चित करने के प्रयोजन के लिए आवश्यक है;
(छ) “स्वामी" के अन्तर्गत हैं-
(i) संयुक्त स्वामी जिसमें अपनी ओर से तथा अन्य संयुक्त स्वामियों की ओर से प्रबंध करने की शक्तियां निहित हैं और किसी ऐसे स्वामी के हक-उत्तराधिकारी, तथा
(ii) प्रबंध करने की शक्तियों का प्रयोग करने वाला कोई प्रबंधक या न्यासी और ऐसे किसी प्रबंधक या न्यासी का पद में उत्तरवर्ती;
(ज) “विहित" से इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों द्वारा विहित अभिप्रेत है;
1[(जक) “प्रतिषिद्ध क्षेत्र" से धारा 20क के अधीन प्रतिषिद्ध क्षेत्र के रूप में विनिर्दिष्ट या घोषित किया गया कोई क्षेत्र अभिप्रेत है;]
(झ) “संरक्षित क्षेत्र" से कोई ऐसा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष अभिप्रेत है, जिसे इस अधिनियम के द्वारा या अधीन राष्ट्रीय महत्व का होना घोषित किया गया है;
(ञ) “संरक्षित संस्मारक" से कोई ऐसा प्राचीन संस्मारक अभिप्रेत है जिसे इस अधिनियम के द्वारा या अधीन राष्ट्रीय महत्व का होना घोषित किया गया है;
1[(ट) “पुनर्निर्माण" से किसी संरचना या भवन का उसकी पूर्व विद्यमान संरचना में ऐसा कोई परिनिर्माण अभिप्रेत है, जिसकी समान क्षैतिजीय और ऊर्ध्वाकार सीमाएं हैं;
(ठ) “विनियमित क्षेत्र" से धारा 20ख के अधीन विनिर्दिष्ट या घोषित किया गया कोई क्षेत्र अभिप्रेत है;
(ड) “मरम्मत और नवीकरण" से किसी पूर्व विद्यमान संरचना या भवन के परिवर्तन अभिप्रेत हैं, किन्तु इसके अंतर्गत निर्माण या पुननिर्माण नहीं होंगे ।]
[2क. जम्मू-कश्मीर राज्य में अप्रवृत्त विधि के प्रति निर्देशों का अर्थान्वयन-इस अधिनियम में किसी ऐसी विधि के प्रति निर्देश का, जो जम्मू-कश्मीर राज्य में प्रवृत्त नहीं है, उस राज्य के संबंध में इस प्रकार अर्थान्वयन किया जाएगा मानो वह उस राज्य में प्रवृत्त तत्समान विधि के प्रति, यदि कोई हो, निर्देश है ।]
राष्ट्रीय महत्व के प्राचीन संस्मारक और पुरातत्वीय स्थल और अवशेष
3. कतिपय प्राचीन संस्मारकों आदि का राष्ट्रीय महत्व के होना समझा जाना-सभी प्राचीन और ऐतिहासिक संस्मारक तथा सभी पुरातत्वीय स्थल और अवशेष, जिन्हें एनशियेंट एंड हिस्टोरिकल मान्यूमेंट्स एंड आर्कियोलाजिकल साइट्स एंड रिमेंस (डिक्लेरेशन ऑफ नेशलन इम्पार्टेंस) ऐक्ट, 1951 (1951 का 71) द्वारा या राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 (1956 का 37) की धारा 126 द्वारा राष्ट्रीय महत्व के होना घोषित किया गया है, इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए ऐसे प्राचीन और ऐतिहासिक संस्मारक या पुरातत्वीय स्थल और अवशेष समझे जाएंगे, जिन्हें राष्ट्रीय महत्व के होना घोषित किया गया है ।
4. प्राचीन संस्मारकों आदि को राष्ट्रीय महत्व के होना घोषित करने की केन्द्रीय सरकार की शक्ति-(1) जहां कि केन्द्रीय सरकार की यह राय है कि कोई प्राचीन संस्मारक या पुरातत्वीय स्थल और अवशेष, जो धारा 3 के अंतर्गत नहीं आता है, राष्ट्रीय महत्व का है वहां वह ऐसे प्राचीन संस्मारक या पुरातत्वीय स्थल और अवशेष को राष्ट्रीय महत्व का होना घोषित करने के अपने आशय की दो मास की सूचना, शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, दे सकेगी और हर ऐसी अधिसूचना की एक प्रति, यथास्थिति, संस्मारक या स्थल और अवशेष के समीप किसी सहजदृश्य स्थान में लगा दी जाएगी ।
(2) ऐसे प्राचीन संस्मारक या पुरातत्वीय स्थल और अवशेष में हितबद्ध कोई व्यक्ति, अधिसूचना निकाले जाने के पश्चात् दो मास के भीतर, संस्मारक या पुरातत्वीय स्थल और अवशेष के राष्ट्रीय महत्व के होने की घोषणा पर आक्षेप कर सकेगा ।
(3) उक्त दो मास की कालावधि के अवसान पर, केन्द्रीय सरकार, उन आक्षेपों के, यदि कोई हों, प्राप्त होने पर विचार करने के पश्चात्, शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, यथास्थिति, प्राचीन संस्मारक या पुरातत्वीय स्थल और अवशेष के राष्ट्रीय महत्व के होने की घोषणा कर सकेगी ।
(4) उपधारा (3) के अधीन प्रकाशित अधिसूचना, जब तक और जहां तक कि वह प्रत्याहृत नहीं कर ली जाती, इस तथ्य का निश्चायक साक्ष्य होगी कि वह संस्मारक या पुरातत्वीय स्थल और अवशेष, जिसके संबंध में वह अधिसूचना है, इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए राष्ट्रीय महत्व का है ।
[4क. धारा 3 और धारा 4 के अधीन राष्ट्रीय महत्व के रूप में घोषित प्राचीन संस्मारकों या पुरातत्वीय स्थलों तथा अवशेषों की बाबत प्रवर्गीकरण और वर्गीकरण-(1) केन्द्रीय सरकार प्राधिकरण की सिफारिश पर, धारा 3 और धारा 4 के अधीन राष्ट्रीय महत्व के रूप में घोषित प्राचीन संस्मारकों या पुरातत्वीय स्थलों तथा अवशेषों की बाबत प्रवर्ग विहित करेगी और ऐसे प्रवर्गों को विहित करते समय वह ऐतिहासिक, पुरातत्वीय और स्थापत्यकला के महत्व और ऐसी अन्य बातों को ध्यान में रखेगी, जो ऐसे प्रवर्गीकरण के प्रयोजन के लिए सुसंगत हों ।
(2) केन्द्रीय सरकार, प्राधिकरण की सिफारिश पर, धारा 3 और धारा 4 के अधीन राष्ट्रीय महत्व के रूप में घोषित सभी प्राचीन संस्मारकों या पुरातत्वीय स्थलों तथा अवशेषों को उपधारा (1) के अधीन विहित प्रवर्गों के अनुसार वर्गीकृत करेगी और तत्पश्चात्, उन्हें जनता के लिए उपलब्ध कराएगी तथा उन्हें अपनी वेबसाइट पर और ऐसी अन्य रीति में भी, जो वह ठीक समझे, प्रदर्शित करेगी ।]
संरक्षित संस्मारक
5. संरक्षित संस्मारक में अधिकारों का अर्जन-(1) महानिदेशक, केन्द्रीय सरकार की मंजूरी से, किसी संरक्षित संस्मारक का क्रय कर सकेगा, या पट्टा ले सकेगा, या दान या वसीयत प्रतिगृहीत कर सकेगा ।
(2) जहां कि कोई संरक्षित संस्मारक बिना स्वामी का है, वहां महानिदेशक, शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, उस संस्मारक की संरक्षकता सम्भाल सकेगा ।
(3) संरक्षित संस्मारक का स्वामी, लिखित लिखत द्वारा महानिदेशक को उस संस्मारक का संरक्षक नियत कर सकेगा और महानिदेशक, केन्द्रीय सरकार की मंजूरी से ऐसी संरक्षकता प्रतिगृहीत कर सकेगा ।
(4) जबकि महानिदेशक ने उपधारा (3) के अधीन किसी संस्मारक की संरक्षकता प्रतिगृहीत कर ली है, तब स्वामी, इस अधिनियम में अभिव्यक्त रूप से उपबन्धित के सिवाय, संस्मारक में वही संपदा, अधिकार, हक और हित रखेगा मानो महानिदेशक उसका संरक्षक नहीं नियत किया गया है ।
(5) जबकि महानिदेशक ने उपधारा (3) के अधीन किसी संस्मारक की संरक्षकता प्रतिगृहीत कर ली है, तब इस अधिनियम के वे उपबंध, जो धारा 6 के अधीन निष्पादित करारों से संबंधित हैं उक्त उपधारा के अधीन निष्पादित लिखित लिखत को लागू होंगे ।
(6) इस धारा में की कोई भी बात किसी संरक्षित संस्मारक के, रूढ़िगत धार्मिक आचारों के लिए उपयोग पर प्रभाव नहीं डालेगी ।
6. संरक्षित संस्मारक का करार द्वारा परिरक्षण-(1) कलक्टर, जबकि उसे केन्द्रीय सरकार द्वारा ऐसे निर्दिष्ट किया जाए किसी संरक्षित संस्मारक के स्वामी से, संस्मारक के अनुरक्षण के लिए विनिर्दिष्ट कालावधि के भीतर केन्द्रीय सरकार से करार करने के लिए प्रस्थापना करेगा ।
(2) इस धारा के अधीन का करार निम्नलिखित सभी विषयों या उनमें से किसी के लिए उपबन्ध कर सकेगा, अर्थात् :-
(क) संस्मारक का अनुरक्षण;
(ख) संस्मारक की अभिरक्षा और उस व्यक्ति के कर्तव्य जो उसकी रखवाली करने के लिए नियोजित किया जाए;
(ग) स्वामी के-
(i) किसी प्रयोजन के लिए संस्मारक का उपयोग करने के;
(ii) संस्मारक में प्रवेश या उसके निरीक्षण के लिए कोई फीस लगाने के,
(iii) संस्मारक के नष्ट करने, हटाने, परिवर्तित करने या विरूपित करने के,या
(iv) संस्मारक के स्थल पर या उसके समीप निर्माण करने के, अधिकार का निर्बन्धन;
(घ) पहुंच की सुविधाएं जो जनता को या उसके किसी अनुभाग को या पुरातत्व अधिकारियों को या स्वामी या किसी पुरातत्व अधिकारी या कलक्टर द्वारा संस्मारक के निरीक्षण या अनुरक्षण के लिए प्रतिनियुक्त व्यक्तियों को अनुज्ञात की जानी हैं;
(ङ) उस दशा में, जिमसें वह भूमि जिस पर संस्मारक स्थित है या उससे लगी हुई भूमि स्वामी द्वारा विक्रय के लिए प्रस्थापित की जाती है, वह सूचना जो केन्द्रीय सरकार को दी जानी है और ऐसी भूमि या ऐसी भूमि के किसी विनिर्दिष्ट प्रभाग को उसके बाजार भाव पर क्रय करने का वह अधिकार जिसे केन्द्रीय सरकार के लिए आरक्षित किया जाना है;
(च) संस्मारक के अनुरक्षण के संबंध में स्वामी द्वारा या केन्द्रीय सरकार द्वारा उपगत किन्हीं व्ययों का संदाय;
(छ) जबकि संस्मारक के अनुरक्षण के संबंध में केन्द्रीय सरकार द्वारा कोई व्यय उपगत किए जाते हैं, तब वे साम्पत्तिक या अन्य अधिकार जो संस्मारक के विषय में केन्द्रीय सरकार में निहित होने हैं;
(ज) करार से उद्भूत होने वाले किसी विवाद का विनिश्चय करने के लिए किसी प्राधिकारी की नियुक्ति, तथा
(झ) संस्मारक के अनुरक्षण से संबंधित कोई विषय, जो स्वामी और केन्द्रीय सरकार के बीच करार का उचित विषय है ।
(3) केन्द्रीय सरकार या स्वामी, इस धारा के अधीन किसी करार के निष्पादन की तारीख से तीन वर्ष के अवसान के पश्चात् किसी समय दूसरे पक्षकार को छह मास की लिखित सूचना देकर उसे समाप्त कर सकेगा :
परन्तु जहां कि करार स्वामी द्वारा समाप्त किया जाता है, वहां वह केन्द्रीय सरकार को, करार की समाप्ति से ठीक पूर्ववर्ती पांच वर्ष के दौरान या यदि करार अल्पतर कालावधि के लिए प्रवृत्त रहा है, तो करार के प्रवर्तन में रहने की कालावधि के दौरान उसके द्वारा संस्मारक के अनुरक्षण पर उपगत व्यय, यदि कोई हों, संदत्त करेगा ।
(4) इस धारा के अधीन कोई करार, उस पक्षकार के व्युत्पन्न अधिकार से, के द्वारा या के अधीन, जिसके द्वारा या जिसकी ओर से करार निष्पादित किया गया था, उस संस्मारक का जिसके संबंध में वह करार है स्वामी होने का दावा करने वाले किसी भी व्यक्ति पर आबद्धकर होगा ।
7. निर्योग्यताधीन या कब्जाविहीन स्वामी-(1) यदि संरक्षित संस्मारक का स्वामी, बाल्यावस्था या अन्य निर्योग्यता के कारण, अपने लिए कार्य करने में असमर्थ है, तो वह व्यक्ति, जो उसकी ओर से कार्य करने के लिए विधिक रूप में सक्षम है, उन शक्तियों का प्रयोग कर सकेगा जो धारा 6 द्वारा स्वामी को प्रदत्त हैं ।
(2) ग्राम की सम्पत्ति की दशा में, ऐसी सम्पत्ति पर प्रबन्ध करने की शक्तियों का प्रयोग करने वाला ग्रामीण या अन्य ग्राम अधिकारी उन शक्तियों का प्रयोग कर सकेगा जो धारा 6 द्वारा स्वामी को प्रदत्त हैं ।
(3) इस धारा की कोई बात ऐसे किसी व्यक्ति को, जो उसी धर्म का न हो, जिसका वह व्यक्ति है, जिसकी ओर से वह कार्य कर रहा है, उस संरक्षित संस्मारक के सम्बन्ध में जो या जिसका कोई भाग कालिकतः उस धर्म की धार्मिक पूजा या आचारों के लिए उपयोग में लाया जाता है, किसी करार को करने या निष्पादित करने के लिए सशक्त करने वाली नहीं समझी जाएगी ।
8. संरक्षित संस्मारक की मरम्मत के लिए विन्यास का उपयोजन-(1) यदि कोई स्वामी या अन्य व्यक्ति, जो किसी संरक्षित संस्मारक के अनुरक्षण के लिए धारा 6 के अधीन करार करने को सक्षम है, ऐसा करार करने से इंकार करता है या करने में असफल रहता है, और यदि ऐसे संस्मारक की मरम्मत करने के प्रयोजन के लिए या अन्य प्रयोजनों में से इस प्रयोजन के लिए भी किसी विन्यास की सृष्टि की गई है, तो केन्द्रीय सरकार, ऐसे विन्यास या उसके भाग के उचित उपयोजन के लिए, जिला न्यायाधीश के न्यायालय में वाद संस्थित कर सकेगी या, यदि संस्मारक की मरम्मत कराने का प्राक्कलित व्यय एक हजार रुपए से अधिक नहीं है, तो जिला न्यायाधीश को आवेदन कर सकेगी ।
(2) उपधारा (1) के अधीन आवेदन की सुनवाई पर, जिला न्यायाधीश, स्वामी और किसी ऐसे व्यक्ति को, जिसका साक्ष्य उसे आवश्यक प्रतीत होता है, समन कर सकेगा और उनकी परीक्षा कर सकेगा और उस विन्यास या उसके किसी भाग के उचित उपयोजन के लिए आदेश पारित कर सकेगा, और ऐसा कोई आदेश ऐसे निष्पादित किया जाएगा मानो वह किसी सिविल न्यायालय की डिक्री हो ।
9. करार करने में असफलता या करार करने से इंकार-(1) यदि कोई स्वामी या अन्य व्यक्ति जो संरक्षित संस्मारक के अनुरक्षण के लिए धारा 6 के अधीन करार करने के लिए सक्षम है, ऐसा करार करने से इंकार करता है या करने में असफल रहता है, तो केन्द्रीय सरकार धारा 6 की उपधारा (2) में विनिर्दिष्ट सभी या किन्हीं बातों के लिए उपबन्ध करने वाला आदेश कर सकेगी और ऐसा आदेश स्वामी या ऐसे अन्य व्यक्ति पर और स्वामी या ऐसे अन्य व्यक्ति से व्युत्पन्न अधिकार से, के द्वारा या के अधीन संस्मारक में हक का दावा करने वाले हर व्यक्ति पर आबद्धकर होगा ।
(2) जहां कि उपधारा (1) के अधीन किया गया आदेश यह उपबन्ध करता है कि संस्मारक का अनुरक्षण करार करने के लिए सक्षम स्वामी या अन्य व्यक्ति द्वारा किया जाएगा, वहां संस्मारक के अनुरक्षण के लिए सभी युक्तियुक्त व्यय केन्द्रीय सरकार द्वारा संदेय होंगे ।
(3) उपधारा (1) के अधीन कोई भी आदेश तब के सिवाय नहीं किया जाएगा जब कि स्वामी को या अन्य व्यक्ति को प्रस्थापित आदेश के विरुद्ध लिखित अभिवेदन करने का अवसर दे दिया गया है ।
10. धारा 6 के अधीन के करार का उल्लंघन प्रतिषिद्ध करने वाला आदेश करने की शक्ति-(1) यदि महानिदेशक यह आशंका करता है कि किसी संरक्षित संस्मारक का स्वामी या अधिभोगी, धारा 6 के अधीन के करार के निबन्धनों के उल्लंघन में संस्मारक को नष्ट करने, हटाने, परिवर्तित करने, विरूपित करने, खतरे में डालने या उसका दुरुपयोग करने या उसके स्थल पर या के समीप निर्माण करने का आशय रखता है, तो महानिदेशक, स्वामी या अधिभोगी को लिखित अभिवेदन करने का अवसर देने के पश्चात् करार का ऐसा कोई उल्लंघन प्रतिषिद्ध करने वाला आदेश कर सकेगा :
परन्तु ऐसा कोई अवसर किसी ऐसी दशा में नहीं भी दिया जा सकेगा, जिसमें महानिदेशक का उन कारणों से, जो अभिलिखित किए जाएंगे, यह समाधान हो जाता है कि वैसा करना समीचीन या साध्य नहीं है ।
(2) इस धारा के अधीन के आदेश से व्यथित कोई भी व्यक्ति केन्द्रीय सरकार से, ऐसे समय के भीतर और ऐसी रीति में, जैसी विहित की जाए, अपील कर सकेगा और केन्द्रीय सरकार का विनिश्चय अंतिम होगा ।
11. करारों का प्रवर्तन-(1) यदि कोई स्वामी या अन्य व्यक्ति जो धारा 6 के अधीन संस्मारक के अनुरक्षण के लिए करार द्वारा आबद्ध है, कोई ऐसा कार्य, जो महानिदेशक की राय में संस्मारक के अनुरक्षण के लिए आवश्यक है, ऐसे युक्तियुक्त समय के भीतर, जो महानिदेशक नियत करे, करने से इंकार करता है या करने में असफल रहता है, तो महानिदेशक ऐसा कोई कार्य करने के लिए किसी भी व्यक्ति को प्राधिकृत कर सकेगा, और स्वामी या अन्य व्यक्ति किसी ऐसे कार्य करने के व्ययों या व्ययों के ऐसे प्रभाग के, जिसके संदाय के लिए स्वामी करार के अधीन दायी हो, संदाय के लिए दायी होगा ।
(2) यदि उपधारा (1) के अधीन स्वामी या अन्य व्यक्ति द्वारा संदेय व्ययों की रकम की बाबत कोई विवाद उद्भूत होता है, तो वह केन्द्रीय सरकार को निर्देशित किया जाएगा जिसका विनिश्चय अंतिम होगा ।
12. कतिपय विक्रयों के क्रेताओं और स्वामी से व्युत्पन्न अधिकार द्वारा दावा करने वाले व्यक्तियों का स्वामी द्वारा निष्पादित लिखत से आबद्ध होना-हर व्यक्ति जो भू-राजस्व की बकाया या अन्य किसी लोक मांग के लिए विक्रय पर, उस भूमि का क्रय करता है जिस पर ऐसा संस्मारक स्थित है जिसके बारे में धारा 5 या धारा 6 के अधीन तत्समय के स्वामी द्वारा कोई लिखत निष्पादित की गई है, और हर ऐसा व्यक्ति, जो उस स्वामी से व्युत्पन्न अधिकार से, के द्वारा या के अधीन, जिसने कोई ऐसी लिखत निष्पादित की है, संस्मारक पर किसी हक का दावा करता है, ऐसी लिखत से आबद्ध होगा ।
13. संरक्षित संस्मारकों का अर्जन-यदि केन्द्रीय सरकार यह आशंका करती है कि किसी संरक्षित संस्मारक के नष्ट हो जाने, क्षत हो जाने, दुरुपयोग में लाए जाने या क्षयग्रस्त होने दिए जाने का खतरा है, तो वह भूमि अर्जन अधिनियम, 1894 (1894 का 1) के उपबन्धों के अधीन उस संरक्षित संस्मारक का अर्जन ऐसे कर सकेगी, मानो संरक्षित संस्मारक का अनुरक्षण उस अधिनियम के अर्थ के भीतर लोक प्रयोजन है ।
14. कतिपय संरक्षित संस्मारकों का अनुरक्षण-(1) केन्द्रीय सरकार हर ऐसे संस्मारक का अनुरक्षण करेगी, जो धारा 13 के अधीन अर्जित किया गया है या जिसके बारे में धारा 5 में वर्णित अधिकारों में से कोई अर्जित किए गए हैं ।
(2) जबकि महानिदेशक ने धारा 5 के अधीन किसी संस्मारक की संरक्षकता संभाली है, तब उसकी ऐसे संस्मारक के अनुरक्षण के प्रयोजन के लिए, सभी युक्तियुक्त समयों पर, स्वयं या अपने अभिकर्ताओं, अधीनस्थों और कर्मकारों द्वारा संस्मारक का निरीक्षण करने के प्रयोजन के लिए और ऐसी सामग्री लाने और ऐसे कार्य करने के प्रयोजन के लिए, जिन्हें वह उसके अनुरक्षण के लिए आवश्यक या वांछनीय समझे, संस्मारक तक पहुंच होगी ।
15. स्वैच्छिक अभिदाय-महानिदेशक किसी संरक्षित संस्मारक के अनुरक्षण के खर्च के निमित्त स्वैच्छिक अभिदाय प्राप्त कर सकेगा और अपने द्वारा ऐसे प्राप्त की गई किन्हीं भी निधियों के प्रबन्ध और उपयोजन के संबंध में आदेश दे सकेगा :
परन्तु इस धारा के अधीन प्राप्त किया गया कोई अभिदाय उस प्रयोजन से भिन्न, जिसके लिए वह अभिदाय किया गया था, किसी अन्य प्रयोजन के लिए उपयोजित नहीं किया जाएगा ।
16. दुरुपयोग किए जाने, प्रदूषित किए जाने या अपवित्र किए जाने से पूजा के स्थान का संरक्षण-(1) इस अधिनियम के अधीन केन्द्रीय सरकार द्वारा अनुरक्षित कोई संस्मारक, जो पूजा का स्थान या पवित्र-स्थान है, अपने स्वरूप से असंगत किसी प्रयोजन के लिए उपयोग में नहीं लाया जाएगा ।
(2) जहां कि केन्द्रीय सरकार ने किसी संरक्षित संस्मारक को धारा 13 के अधीन अर्जित किया है, या जहां कि महानिदेशक ने धारा 5 के अधीन किसी संरक्षित संस्मारक का क्रय किया है या पट्टे पर लिया है या दान या वसीयत प्रतिगृहीत किया है या उसकी संरक्षकता संभाली है, और ऐसा संस्मारक या उसका कोई भाग धार्मिक पूजा या आचारों के लिए किसी समुदाय द्वारा उपयोग में लाया जाता है, वहां कलक्टर ऐसे संस्मारक या उसके भाग के प्रदूषित या अपवित्र किए जाने से संरक्षण के लिए निम्नलिखित प्रकार से सम्यक् उपबन्ध करेगा-
(क) उन शर्तों के अनुसार प्रवेश के सिवाय जो उक्त संस्मारक या उसके किसी भाग के धार्मिक भारसाधक व्यक्तियों की, यदि कोई हों, सहमति से विहित की गई हों, किसी ऐसे व्यक्ति का, जो उस समुदाय की, जिसके द्वारा वह संस्मारक या उसका कोई भाग उपयोग में लाया जाता हो, धार्मिक प्रथाओं द्वारा इस प्रकार प्रवेश करने का हकदार न हो, उसमें प्रवेश प्रतिषिद्ध करके, अथवा
(ख) कोई ऐसी अन्य कार्रवाई करके, जिसे वह इस निमित्त आवश्यक समझे ।
17. किसी संस्मारक में सरकार के अधिकारों का त्याग-केन्द्रीय सरकार की मंजूरी से महानिदेशक,-
(क) जहां कि अधिकार महानिदेशक द्वारा इस अधिनियम के अधीन किसी संस्मारक के बारे में किसी विक्रय, पट्टा, दान या विल के आधार पर अर्जित किए गए हैं, वहां शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, इस प्रकार अर्जित अधिकारों को उस व्यक्ति के पक्ष में त्याग सकेगा, जो संस्मारक का तत्समय स्वामी हुआ होता, यदि ऐसे अधिकार अर्जित न किए गए होते; अथवा
(ख) संस्मारक की कोई ऐसी संरक्षकता त्याग सकेगा जो उसने इस अधिनियम के अधीन संभाली है ।
18. संरक्षित संस्मारकों तक पहुंच का अधिकार-इस अधिनियम के अधीन बनाए गए किन्हीं नियमों के अध्यधीन रहते हुए, जनता को किसी भी संरक्षित संस्मारक तक पहुंच का अधिकार होगा ।
संरक्षित क्षेत्र
19. संरक्षित क्षेत्रों में सम्पत्ति अधिकारों के उपभोग पर निर्बन्धन-(1) कोई भी व्यक्ति, जिसके अतंर्गत संरक्षित क्षेत्र का स्वामी या अधिभोगी भी है, संरक्षित क्षेत्र के भीतर किसी भवन का सन्निर्माण या ऐसे क्षेत्र में कोई खनन, खदान क्रिया, उत्खनन, विस्फोट या इसी प्रकार की कोई संक्रिया नहीं करेगा और न केन्द्रीय सरकार की अनुज्ञा के बिना ऐसे क्षेत्र या उसके किसी भाग का उपयोग किसी अन्य रीति से करेगा :
परन्तु इस उपधारा की कोई भी बात ऐसे किसी क्षेत्र या उसके भाग का खेती करने के प्रयोजनों के लिए उपयोग प्रतिषिद्ध करने वाली नहीं समझी जाएगी, यदि ऐसी खेती में भूतल से एक फुट से अधिक मिट्टी का खोदना नहीं होता है ।
(2) केन्द्रीय सरकार आदेश द्वारा यह निर्दिष्ट कर सकेगी कि संरक्षित क्षेत्र के भीतर उपधारा (1) के उपबन्धों के उल्लंघन में किसी व्यक्ति द्वारा सन्निर्मित किसी भवन को विनिर्दिष्ट कालावधि के भीतर हटा दिया जाए और यदि वह व्यक्ति आदेश के अनुपालन से इन्कार करता है या करने में असफल रहता है, तो कलक्टर उस निर्माण को हटवा सकेगा और वह व्यक्ति ऐसे हटाए जाने के खर्च के संदाय के लिए दायी होगा ।
20. संरक्षित क्षेत्र को अर्जित करने की शक्ति-यदि केन्द्रीय सरकार की यह राय है कि किसी संरक्षित क्षेत्र में राष्ट्रीय हित और मूल्य का कोई प्राचीन संस्मारक या पुरावशेष है, तो वह ऐसे क्षेत्र का अर्जन भूमि अर्जन अधिनियम, 1894 (1894 का 1) के उपबन्धों के अधीन ऐसे कर सकेगी मानो वह अर्जन उस अधिनियम के अर्थ के भीतर लोक प्रयोजन के लिए है ।
[प्रतिषिद्ध और विनियमित क्षेत्र
20क. प्रतिषिद्ध क्षेत्र की घोषणा और प्रतिषिद्ध क्षेत्र में सार्वजनिक कार्य या अन्य कार्य किया जाना-(1) यथास्थिति, संरक्षित क्षेत्र या संरक्षित संस्मारक की सीमा से आरंभ होने वाला और सभी दिशाओं में सौ मीटर की दूरी तक विस्तारित होने वाला प्रत्येक क्षेत्र, उस संरक्षित क्षेत्र या संरक्षित संस्मारक की बाबत प्रतिषिद्ध क्षेत्र होगा :
परन्तु केंद्रीय सरकार, प्राधिकरण की सिफारिश पर, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, एक सौ मीटर से अधिक के किसी क्षेत्र को धारा 4क के अधीन, यथास्थिति, किसी संरक्षित संस्मारक, या संरक्षित क्षेत्र के वर्गीकरण को ध्यान में रखते हुए, प्रतिषिद्ध क्षेत्र के रूप में विनिर्दिष्ट कर सकेगी ।
(2) धारा 20ग में यथा अन्यथा उपबंधित के सिवाय, किसी पुरातत्व अधिकारी से भिन्न कोई व्यक्ति, किसी प्रतिषिद्ध क्षेत्र में कोई निर्माण नहीं करेगा ।
(3) ऐसे मामले में, जहां, यथास्थिति, केंद्रीय सरकार या महानिदेशक का यह समाधान हो जाता है कि,-
(क) ऐसे सार्वजनिक कार्य अथवा जनता के लिए आवश्यक किसी परियोजना को किए जाने के लिए यह आवश्यक या समीचीन है; या
(ख) ऐसे अन्य कार्य या परियोजना का, उसकी राय में, संस्मारक या उसके अत्यधिक आस-पास के क्षेत्र के परिरक्षण, उसकी सुरक्षा, संरक्षा या उस तक पहुंच पर कोई सारवान् प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा,
तो वह, उपधारा (2) में किसी बात के होते हुए भी, आपवादिक मामलों में और लोकहित को ध्यान में रखते हुए, आदेश द्वारा और लेखबद्ध किए जाने वाले कारणों से, प्रतिषिद्ध क्षेत्र में ऐसे सार्वजनिक कार्य या जनता के लिए आवश्यक परियोजना या अन्य निर्माणों को किए जाने की अनुज्ञा दे सकेगी/दे सकेगा :
परन्तु किसी संरक्षित संस्मारक के निकटवर्ती किसी क्षेत्र या उससे लगे हुए ऐसे क्षेत्र को, जिसे 16 जून, 1992 को या उसके पश्चात् आरंभ होने वाली, किंतु उस तारीख से, जिसको प्राचीन संस्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष (संशोधन और विधिमान्यकरण) विधेयक, 2010 को राष्ट्रपति की अनुमति प्राप्त होती है, पूर्व समाप्त होने वाली अवधि के दौरान ऐसे संरक्षित संस्मारक के संबंध में प्रतिषिद्ध क्षेत्र के रूप में घोषित किया गया है, इस अधिनियम के उपबंधों के अनुसार उस संरक्षित संस्मारक की बाबत घोषित किया गया प्रतिषिद्ध क्षेत्र समझा जाएगा और, यथास्थिति, केंद्रीय सरकार या महानिदेशक द्वारा विशेषज्ञ सलाहकार समिति की सिफारिश के आधार पर प्रतिषिद्ध क्षेत्र के भीतर निर्माण के लिए दी गई कोई अनुज्ञा या अनुज्ञप्ति इस अधिनियम के उपबंधों के अनुसार इस प्रकार विधिमान्य रूप से दी गई समझी जाएगी, मानो यह धारा सभी तात्त्विक समयों पर प्रवृत्त थी :
परन्तु यह और कि पहले परंतुक में अंतर्विष्ट कोई बात प्राचीन संस्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष नियम, 1959 की धारा 34 के अधीन जारी की गई भारत सरकार के संस्कृति विभाग (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण) की अधिसूचना सं० का० आ० 1764, तारीख 16 जून, 1992 के अनुसरण में किसी प्रतिषिद्ध क्षेत्र में किसी भवन या संरचना के निर्माण या पुनर्निर्माण के पूरा होने के पश्चात् या भारत सरकार के आदेश सं० 24/22/2006-एम, तारीख 20 जुलाई, 2006 के अनुसरण में गठित समिति की (जिसे बाद में तारीख 27 अगस्त, 2008 और 5 मई, 2009 के आदेशों में विशेषज्ञ सलाहकार समिति कहा गया है) सिफारिशें प्राप्त किए बिना दी गई किसी अनुज्ञा को लागू नहीं होगी ।]
[(4) किसी प्रतिषिद्ध क्षेत्र में किसी सार्वजनिक कार्य या जनता के लिए आवश्यक परियोजना या अन्य निर्माण करने सहित उपधारा (3) में निर्दिष्ट कोई अनुज्ञा, उस तारीख को और उसके पश्चात्, जिसको प्राचीन संस्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष (संशोधन और विधिमान्यकरण) विधेयक, 2010 को राष्ट्रपति की अनुमति प्राप्त होती है, नहीं दी जाएगी ।]
[20ख. प्रत्येक संरक्षित संस्मारक के संबंध में विनियमित क्षेत्र की घोषणा-धारा 3 और धारा 4 के अधीन राष्ट्रीय महत्व के रूप में घोषित प्रत्येक प्राचीन संस्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष के संबंध में प्रतिषिद्ध क्षेत्र की सीमा पर आरंभ होने वाले और सभी दिशाओं में दो सौ मीटर की दूरी तक विस्तारित होने वाला प्रत्येक क्षेत्र, ऐसे प्रत्येक प्राचीन संस्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष की बाबत विनियमित क्षेत्र होगा :
परंतु केंद्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, दो सौ मीटर से अधिक के किसी क्षेत्र को, धारा 4क के अधीन, यथास्थिति, किसी संरक्षित संस्मारक या संरक्षित क्षेत्र के वर्गीकरण को ध्यान में रखते हुए, विनियमित क्षेत्र के रूप में विनिर्दिष्ट कर सकेगी :
परन्तु यह और कि किसी संरक्षित संस्मारक के निकटवर्ती किसी क्षेत्र या उससे लगे हुए ऐसे क्षेत्र को, जिसे 16 जून, 1992 को या उसके पश्चात् आरंभ होने वाली, किंतु उस तारीख से, जिसको प्राचीन संस्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष (संशोधन और विधिमान्यकरण) विधेयक, 2010 को राष्ट्रपति की अनुमति प्राप्त होती है, पूर्व समाप्त होने वाली अवधि के दौरान, ऐसे संरक्षित संस्मारक के संबंध में, विनियमित क्षेत्र के रूप में घोषित किया गया है, इस अधिनियम के उपबंधों के अनुसार उस संरक्षित संस्मारक की बाबत घोषित किया गया विनियमित क्षेत्र समझा जाएगा और ऐसे विनियमित क्षेत्र में निर्माण के लिए दी गई कोई अनुज्ञा या अनुज्ञप्ति, इस अधिनियम के उपबंधों के अनुसार इस प्रकार विधिमान्य रूप से दी गई समझी जाएगी, मानो यह धारा सभी तात्त्विक समयों पर प्रवृत्त थी ।]
[20ग. प्रतिषिद्ध क्षेत्र में मरम्मत या नवीकरण या विनियमित क्षेत्र में निर्माण या पुनर्निर्माण या मरम्मत या नवीकरण के लिए आवेदन-(1) ऐसा कोई व्यक्ति, जो ऐसे किसी भवन या संरचना का स्वामी है, जो 16 जून, 1992 से पूर्व किसी प्रतिषिद्ध क्षेत्र में विद्यमान थी या जिसका निर्माण बाद में महानिदेशक के अनुमोदन से किया गया था और वह ऐसे भवन या संरचना की कोई मरम्मत या उसका नवीकरण करने की वांछा करता है, यथास्थिति, ऐसी मरम्मत या नवीकरण करने के लिए सक्षम प्राधिकारी को आवेदन कर सकेगा ।
(2) ऐसा कोई व्यक्ति, जो किसी विनियमित क्षेत्र में किसी भवन या संरचना या भूमि का स्वामी है या कब्जा रखता है और वह उस भूमि पर ऐसे भवन या संरचना का कोई निर्माण या पुनर्निर्माण या उसकी मरम्मत या नवीकरण करने की वांछा करता है, यथास्थिति, निर्माण या पुनर्निर्माण या मरम्मत या नवीकरण करने के लिए सक्षम प्राधिकारी को आवेदन कर सकेगा ।
सक्षम प्राधिकारी द्वारा अनुज्ञा प्रदान करना
20घ. विनियमित क्षेत्र के भीतर सक्षम प्राधिकारी द्वारा अनुज्ञा प्रदान करना-(1) इस अधिनियम की धारा 20ग के अधीन अनुज्ञा प्रदान करने के लिए प्रत्येक आवेदन सक्षम प्राधिकारी को, ऐसी रीति में किया जाएगा, जो विहित की जाए ।
(2) सक्षम प्राधिकारी, आवेदन की प्राप्ति के पन्द्रह दिन के भीतर, यथास्थिति, संबद्ध संरक्षित संस्मारक या संरक्षित क्षेत्र से संबंधित विरासत संबंधी उपविधियों को ध्यान में रखते हुए, ऐसे निर्माण के प्रभाव पर (जिसके अंतर्गत बड़े पैमाने पर विकास परियोजना, सार्वजनिक परियोजना और जनता के लिए आवश्यक परियोजना का प्रभाव भी है) विचार करने और उसकी सूचना देने के लिए उसे प्राधिकरण को अग्रेषित करेगा :
परन्तु केंद्रीय सरकार ऐसे आवेदनों का, जिनकी बाबत इस उपधारा के अधीन अनुज्ञा दी जा सकेगी और ऐसे आवेदन का, जिसे प्राधिकरण को उसकी सिफारिशों के लिए निर्दिष्ट किया जाएगा, प्रवर्ग विहित कर सकेगी ।
(3) प्राधिकरण, उपधारा (2) के अधीन आवेदन की प्राप्ति की तारीख से दो मास के भीतर ऐसे निर्माण के प्रभाव के बारे में (जिसके अंतर्गत बड़े पैमाने पर विकास परियोजना, सार्वजनिक परियोजना और जनता के लिए आवश्यक परियोजना का प्रभाव भी है) सक्षम प्राधिकारी को सूचित करेगा ।
(4) सक्षम प्राधिकारी, उपधारा (3) के अधीन प्राधिकरण से सूचना की प्राप्ति के एक मास के भीतर, प्राधिकरण द्वारा सिफारिश किए गए अनुसार या तो अनुज्ञा प्रदान करेगा या उसे नामंजूर करेगा ।
(5) प्राधिकरण की सिफारिशें अंतिम होंगी ।
(6) सक्षम प्राधिकारी द्वारा इस धारा के अधीन अनुज्ञा प्रदान करने से इंकार किए जाने की दशा में, वह संबंधित व्यक्ति को, अवसर प्रदान करने के पश्चात् आवेदन की प्राप्ति की तारीख से तीन मास के भीतर लिखित आदेश द्वारा, आवेदक, केंद्रीय सरकार और प्राधिकरण को ऐसे इंकार किए जाने की सूचना देगा ।
(7) यदि सक्षम प्राधिकारी की, उपधारा (4) के अधीन अनुज्ञा प्रदान करने के पश्चात् और उस उपधारा में निर्दिष्ट मरम्मत या नवीकरण कार्य या भवन का पुनर्निर्माण या निर्माण किए जाने के दौरान (उसके कब्जे में की सामग्री के आधार पर या अन्यथा) यह राय है कि ऐसी मरम्मत या नवीकरण कार्य या भवन के पुनर्निर्माण या निर्माण का संस्मारक के परिरक्षण, सुरक्षा, संरक्षा या उस तक पहुंच पर अत्यधिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना है तो वह उसे प्राधिकरण को उसकी सिफारिशों के लिए निर्दिष्ट कर सकेगा और यदि इस प्रकार सिफारिश की जाती हो तो उपधारा (4) के अधीन दी गई अनुज्ञा को, यदि ऐसा अपेक्षित हो, वापस ले सकेगा :
परन्तु सक्षम प्राधिकारी, आपवादिक मामलों में, धारा 20ङ की उपधारा (1) के अधीन, विरासत संबंधी उक्त विधियां तैयार किए जाने और उस धारा की उपधारा (7) के अधीन उन्हें प्रकाशित किए जाने तक, धारा 20ग की उपधारा (2) में निर्दिष्ट आवेदक को प्राधिकरण के अनुमोदन से अनुज्ञा प्रदान कर सकेगा ।
(8) यथास्थिति, केंद्रीय सरकार या महानिदेशक, इस अधिनियम के अधीन दी गई या नामंजूर की गई सभी अनुज्ञाओं को अपनी वेबसाइट पर प्रदर्शित करेगी/करेगा ।
20ङ. विरासत संबंधी उपविधियां-(1) समक्ष प्राधिकारी, भारतीय राष्ट्रीय कला और सांस्कृतिक विरासत न्यास के, जो भारतीय न्यास अधिनियम, 1882 (1882 का 2) के अधीन रजिस्ट्रीकृत न्यास है परामर्श से, या ऐसे अन्य विशेषज्ञ विरासत न्यासों से, जो केंद्रीय सरकार द्वारा अधिसूचित किए जाएं, परामर्श से, प्रत्येक संरक्षित संस्मारक और संरक्षित क्षेत्र की बाबत विरासत संबंधी उपविधियां तैयार करेगा ।
(2) उपधारा (1) में निर्दिष्ट विरासत संबंधी उपविधियों में, ऐसे विषयों के अतिरिक्त, जो विहित किए जाएं, उत्थापनों, पुराभागों, निकास प्रणालियों, सड़कों और सेवा अवसंरचना (जिसके अंतर्गत बिजली के खंभे, जल और सीवर पाइपलाइनें भी हैं) जैसे विरासत संबंधी नियंत्रणों से संबंधित विषय भी सम्मिलित होंगे ।
(3) केंद्रीय सरकार, नियमों द्वारा, प्रत्येक संरक्षित क्षेत्र या संरक्षित संस्मारक या प्रतिषिद्ध क्षेत्र या विनियमित क्षेत्र के संबंध में विस्तृत स्थल योजनाएं तैयार करने की रीति, वह समय, जिसके भीतर ऐसी विरासत संबंधी उपविधियां तैयार की जाएंगी और प्रत्येक ऐसी विरासत संबंधी उपविधि में सम्मिलित की जाने वाली विशिष्टियां विनिर्दिष्ट करेगी ।
(4) सक्षम प्राधिकारी, विस्तृत स्थल योजनाएं और विरासत संबंधी उपविधियां तैयार करने के प्रयोजन के लिए उतनी संख्या में विशेषज्ञों या परामर्शियों को नियुक्त कर सकेगा, जितनी वह ठीक समझे ।
(5) उपधारा (1) के अधीन तैयार की गई प्रत्येक विरासत संबंधी उपविधि की एक प्रति प्राधिकरण को उसके अनुमोदन के लिए भेजी जाएगी ।
(6) उपधारा (5) के अधीन प्राधिकरण द्वारा यथा अनुमोदित विरासत संबंधी उपविधियों की एक प्रति संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखी जाएगी ।
(7) प्रत्येक विरासत संबंधी उपविधि को, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष उसे रखे जाने के ठीक पश्चात्, सक्षम प्राधिकारी द्वारा अपनी वेबसाइट पर प्रदर्शित करके और ऐसी अन्य रीति में भी, जो वह ठीक समझे, जनता के लिए उपलब्ध कराया जाएगा ।
राष्ट्रीय संस्मारक प्राधिकरण
20च. राष्ट्रीय संस्मारक प्राधिकरण का गठन-(1) केंद्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, राष्ट्रीय संस्मारक प्राधिकरण नामक एक प्राधिकरण का गठन करेगी ।
(2) प्राधिकरण निम्नलिखित से मिलकर बनेगा,-
(क) राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किए जाने वाला, पूर्णकालिक आधार पर, एक अध्यक्ष, जिसके पास पुरातत्व विज्ञान, ग्राम और नगर योजना, वास्तुकला, विरासत और संरक्षण-वास्तुकला या विधि के क्षेत्रों में सिद्ध अनुभव और विशेषज्ञता हो;
(ख) केंद्रीय सरकार द्वारा धारा 20छ में निर्दिष्ट चयन समिति की सिफारिश पर नियुक्त किए जाने वाले उतनी संख्या में सदस्य, जो पांच पूर्णकालिक सदस्यों और पांच अंशकालिक सदस्यों से अधिक न हों, जिनके पास पुरातत्व विज्ञान, ग्राम और नगर योजना, वास्तुकला, विरासत और संरक्षण-वास्तुकला या विधि के क्षेत्रों में सिद्ध अनुभव और विशेषज्ञता हो;
(ग) महानिदेशक, सदस्य, के रूप में, पदेन ।
(3) प्राधिकरण के पूर्णकालिक अध्यक्ष या प्रत्येक पूर्णकालिक सदस्य और प्रत्येक अंशकालिक सदस्य की पदावधि उस तारीख से, जिसको वह उस रूप में पद ग्रहण करता है, तीन वर्ष की होगी और वह पुनःनियुक्ति के लिए पात्र नहीं होगा :
परंतु उपधारा (2) के खंड (ग) में यथा अन्यथा उपबंधित के सिवाय, ऐसा कोई व्यक्ति, जिसने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण में या भारत सरकार या किसी राज्य सरकार के संस्कृति मंत्रालय में कोई पद धारण किया है या जो किसी ऐसे पद पर नियुक्त किए जाने हेतु विचार किए जाने के लिए उपयुक्त नहीं पाया गया है, प्राधिकरण के अध्यक्ष या सदस्य के रूप में नियुक्त किए जाने के लिए पात्र नहीं होगा :
परंतु यह और कि ऐसा कोई व्यक्ति, जिसे या तो अनुज्ञा या अनुज्ञप्ति मंजूर की गई थी या ऐसी किसी अनुज्ञा या अनुज्ञप्ति मंजूर किए जाने से इंकार किया गया था या ऐसा कोई व्यक्ति या उसका कोई नातेदार जिसका किसी प्रतिषिद्ध क्षेत्र या किसी विनियमित क्षेत्र में कोई हित है, अध्यक्ष या सदस्य के रूप में नियुक्त किए जाने के लिए पात्र नहीं होगा ।
स्पष्टीकरण-इस धारा के प्रयोजनों के लिए “नातेदार" से निम्नलिखित अभिप्रेत हैं,-
(i) प्राधिकरण के अध्यक्ष या सदस्य का पति या पत्नी;
(ii) प्राधिकरण के अध्यक्ष या सदस्य का भाई या बहन;
(iii) प्राधिकरण के अध्यक्ष या सदस्य के पति या पत्नी का भाई या बहन;
(iv) प्राधिकरण के अध्यक्ष या सदस्य के माता-पिता में से किसी का भाई या बहन;
(v) प्राधिकरण के अध्यक्ष या सदस्य का कोई पारंपरिक पूर्वपुरूष या वंशज;
(vi) प्राधिकरण के अध्यक्ष या सदस्य के पति या पत्नी का कोई पारंपरिक पूर्वपुरूष या वंशज;
(vii) खंड (ii) से खंड (vi) में निर्दिष्ट व्यक्ति का पति या की पत्नी ।
(4) भारत सरकार के संयुक्त सचिव से अनिम्न पंक्ति का कोई अधिकारी प्राधिकरण का सदस्य-सचिव होगा ।
(5) केन्द्रीय सरकार उतनी संख्या में अधिकारी और अन्य कर्मचारी उपलब्ध कराएगी, जितने इस अधिनियम के अधीन प्राधिकरण द्वारा कृत्यों के निर्वहन के लिए आवश्यक हों ।
20छ. प्राधिकरण के सदस्यों के चयन के लिए चयन समिति-(1) प्राधिकरण के प्रत्येक पूर्णकालिक सदस्य और प्रत्येक अंशकालिक सदस्य का चयन निम्नलिखित व्यक्तियों से मिलकर बनी एक चयन समिति द्वारा किया जाएगा, अर्थात् :-
(क) मंत्रिमंडल सचिव-अध्यक्ष, पदेन;
(ख) संस्कृति मंत्रालय का सचिव-सदस्य, पदेन;
(ग) शहरी विकास मंत्रालय का सचिव-सदस्य, पदेन;
(घ) पुरातत्व विज्ञान, स्थापत्य कला, विरासत या संरक्षण के क्षेत्रों में सिद्ध अनुभव और विशेषज्ञता रखने वाले व्यक्तियों में से तीन विशेषज्ञ, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा नामनिर्दिष्ट किए जाएं ।
(2) उपधारा (1) में निर्दिष्ट चयन समिति प्राधिकरण के पूर्णकालिक सदस्यों और अंशकालिक सदस्यों का चयन करने के प्रयोजनों के लिए अपनी स्वयं की प्रक्रिया विनियमित करेगी ।
20ज. वेतन, भत्ते और प्राधिकरण की बैंठकें-(1) प्राधिकरण के पूर्णकालिक अध्यक्ष और पूर्णकालिक सदस्यों को संदेय वेतन और भत्ते तथा उनकी सेवा के अन्य निबंधन और शर्तें तथा अंशकालिक सदस्यों को संदेय फीस या भत्ते इस प्रकार होंगे, जो विहित किए जाएं :
परन्तु पूर्णकालिक अध्यक्ष और पूर्णकालिक सदस्यों के न तो वेतन और भत्तों में, न ही उनकी सेवा के अन्य निबंधनों और शर्तों में उनकी नियुक्ति के पश्चात् उनके अलाभप्रद रूप में कोई परिवर्तन किया जाएगा ।
(2) प्राधिकरण अपनी बैठकें करने के प्रयोजनों के लिए (ऐसी बैठकों की गणपूर्ति सहित) और इस अधिनियम के अधीन अनुज्ञा प्रदान करने के प्रयोजनों के लिए अपनी स्वयं की प्रक्रिया विनियमित करेगा ।
(3) प्राधिकरण के सभी विनिश्चयों का प्रकाशन ऐसी रीति में किया जाएगा, जो वह विनिश्चित करे और उन्हें उसकी तथा केन्द्रीय सरकार की वेबसाइट पर भी प्रकाशित किया जाएगा ।
20झ. प्राधिकरण के कृत्य और शक्तियां-(1) प्राधिकरण निम्नलिखित शक्तियों का प्रयोग या कृत्यों का निर्वहन करेगा, अर्थात् :-
(क) प्राचीन संस्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष (संशोधन और विधिमान्यकरण) अधिनियम, 2010 के प्रारंभ के पूर्व धारा 3 और धारा 4 के अधीन राष्ट्रीय महत्व के रूप में घोषित संरक्षित संस्मारकों और संरक्षित क्षेत्रों के श्रेणीकरण और वर्गीकरण के संबंध में केंद्रीय सरकार को सिफारिशें करना ;
(ख) ऐसे संरक्षित संस्मारकों और संरक्षित क्षेत्रों के श्रेणीकरण और वर्गीकरण के लिए केंद्रीय सरकार को सिफारिश करना, जिन्हें प्राचीन संस्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष (संशोधन और विधिमान्यकरण) अधिनियम, 2010 के प्रारंभ के पश्चात्, धारा 4 के अधीन राष्ट्रीय महत्व के रूप में घोषित किया जाए;
(ग) सक्षम प्राधिकारियों के कार्यकरण का निरीक्षण करना;
(घ) इस अधिनियम के उपबंधों के क्रियान्वयन के लिए उपाय सुझाना;
(ङ) सार्वजनिक परियोजनाओं और जनता के लिए आवश्यक ऐसी परियोजनाओं, जो विनियमित क्षेत्रों में प्रस्तावित की जाएं, सहित बड़े पैमाने पर विकास परियोजनाओं के प्रभाव पर विचार करना और उनके संबंध में सक्षम प्राधिकारी को सिफारिशें करना;
(च) अनुज्ञा देने के लिए सक्षम प्राधिकारी को सिफारिशें करना ।
(2) प्राधिकरण को इस अधिनियम के अधीन कृत्यों का निर्वहन करने के प्रयोजन के लिए वही शक्तियां होंगी, जो निम्नलिखित मामलों की बाबत किसी वाद के विचारण करते समय सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) के अधीन किसी सिविल न्यायालय में निहित हैं, अर्थात् :-
(क) किसी व्यक्ति को समन करना और हाजिर कराना तथा शपथ पर उसकी परीक्षा करना;
(ख) दस्तावेजों के प्रकटीकरण और पेश किए जाने की अपेक्षा करना;
(ग) कोई अन्य विषय, जो विहित किया जाए ।
20ञ. अध्यक्ष और सदस्यों का हटाया जाना-(1) धारा 20च की उपधारा (3) में किसी बात के होते हुए भी, अध्यक्ष की दशा में, राष्ट्रपति और पूर्णकालिक सदस्य तथा अंशकालिक सदस्य की दशा में, केन्द्रीय सरकार, आदेश द्वारा प्राधिकरण के अध्यक्ष या ऐसे किसी सदस्य को पद से हटा सकेगी, यदि वह,-
(क) दिवालिया न्यायनिर्णीत किया गया है; या
(ख) ऐसे किसी अपराध के लिए दोषसिद्ध किया गया है, जिसमें केन्द्रीय सरकार की राय में नैतिक अधमता अंतर्वलित है; या
(ग) ऐसे अध्यक्ष या अन्य सदस्य के रूप में कार्य करने के लिए शारीरिक या मानसिक रूप से असमर्थ हो गया है; या
(घ) उसने ऐसे वित्तीय या अन्य हित अर्जित कर लिए हैं, जिनसे उसके कृत्यों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना है; या
(ङ) उसने अपनी हैसियत का इस प्रकार दुरुपयोग किया है, जिससे उसका पद पर बने रहना लोकहित के प्रतिकूल हो गया हो ।
(2) प्राधिकरण का अध्यक्ष या कोई सदस्य तब तक उपधारा (1) के खंड (घ) और खंड (ङ) के अधीन हटाया नहीं जाएगा, जब तक उसे मामले में सुने जाने का युक्तियुक्त अवसर न दिया गया हो ।
20ट. अध्यक्ष और सदस्यों द्वारा भावी नियोजन पर निर्बंधन-यथास्थिति, प्राधिकरण का अध्यक्ष या पूर्णकालिक सदस्य, पद पर न रहने पर इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन रहते हुए उस तारीख से, जिसको वह पद पर नहीं रहता है, पांच वर्ष की अवधि के लिए पुरातत्व विज्ञान, ग्राम और नगर योजना, स्थापत्य, विरासत और संरक्षण-वास्तुकला से मुख्य रूप से संबंधित प्रकृति की या ऐसी किसी संस्था, अभिकरण या संगठन में, (जिसके मामले अध्यक्ष या ऐसे सदस्य के समक्ष थे, भावी नियोजन के लिए जिसके अंतर्गत परामर्शी या विशेषज्ञ के रूप में या अन्यथा भी है) अपात्र होगा ।
20ठ. प्राधिकरण को निदेश जारी करने की केन्द्रीय सरकार की शक्ति-(1) इस अधिनियम के पूर्वगामी उपबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, प्राधिकरण इस अधिनियम के अधीन अपनी शक्तियों के प्रयोग या अपने कृत्यों के निर्वहन में तकनीकी और प्रशासनिक विषयों से भिन्न नीति के प्रश्न पर ऐसे निदेशों से आबद्ध होगा, जो केन्द्रीय सरकार, समय-समय पर, लिखित रूप में उसे दे :
परन्तु प्राधिकरण को, यथासाध्य इस उपधारा के अधीन कोई निदेश दिए जाने के पूर्व अपना मत व्यक्त करने का अवसर दिया जाएगा ।
(2) इस संबंध में केन्द्रीय सरकार का विनिश्चय अंतिम होगा कि क्या कोई प्रश्न नीति का है या नहीं ।
20ड. सक्षम प्राधिकारी को निदेश जारी करने की केन्द्रीय सरकार की शक्ति-इस अधिनियम के पूर्वगामी उपबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, सक्षम प्राधिकारी, इस अधिनियम के अधीन अपनी शक्तियों के प्रयोग या अपने कृत्यों के निर्वहन में ऐसे निदेशों से आबद्ध होगा, जो केन्द्रीय सरकार, समय-समय पर, लिखित रूप में उसे दे ।
20ढ. प्राधिकरण को अधिक्रांत करने की केन्द्रीय सरकार की शक्ति-(1) यदि, किसी समय केन्द्रीय सरकार की यह राय है कि,-
(क) प्राधिकरण के नियंत्रण से परे परिस्थितियों के कारण वह इस अधिनियम के उपबंधों द्वारा या उसके अधीन अधिरोपित कृत्यों का निर्वहन या कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ है; या
(ख) प्राधिकरण ने, इस अधिनियम के अधीन केन्द्रीय सरकार द्वारा दिए गए किसी निदेश का पालन करने में या इस अधिनियम के उपबंधों द्वारा या उसके अधीन उस पर अधिरोपित कृत्यों के निर्वहन या कर्तव्यों के पालन में लगातार व्यतिक्रम किया है और ऐसे व्यतिक्रम के परिमाणस्वरूप प्राधिकरण की वित्तीय स्थिति या प्राधिकरण के प्रशासन को क्षति हुई है; या
(ग) ऐसी परिस्थितियां विद्यमान हैं, जिनके कारण लोकहित में ऐसा करना आवश्यक हो गया है,
तो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, छह मास से अनधिक की ऐसी अवधि के लिए, जो अधिसूचना में विनिर्दिष्ट की जाए, प्राधिकरण को अधिक्रांत कर सकेगी और अधिनियम के अधीन शक्तियों का प्रयोग और कर्तव्यों का निवर्हन करने के लिए ऐसे किसी व्यक्ति या व्यक्तियों को नियुक्त कर सकेगी, जिसे या जिन्हें राष्ट्रपति निदेश दे :
परन्तु ऐसी किसी अधिसूचना के जारी किए जाने के पूर्व केन्द्रीय सरकार प्राधिकरण को प्रस्तावित अधिक्रमण के विरुद्ध अभ्यावेदन करने का युक्तियुक्त अवसर देगी और प्राधिकरण के अभ्यावेदन, यदि कोई हों, पर विचार करेगी ।
(2) उपधारा (1) के अधीन प्राधिकरण को अधिक्रांत करने वाली अधिसूचना के प्रकाशन पर,-
(क) अध्यक्ष तथा अन्य सभी पूर्णकालिक सदस्य और अंशकालिक सदस्य अधिक्रमण की तारीख से उस रूप में अपने पद रिक्त कर देंगे;
(ख) ऐसी सभी शक्तियों, कृत्यों और कर्तव्यों का प्रयोग और निर्वहन, जो इस अधिनियम के उपबंधों द्वारा या इसके अधीन प्राधिकरण द्वारा या उसकी ओर से किया जा रहा था, उपधारा (3) के अधीन प्राधिकरण का पुनर्गठन किए जाने तक, उपधारा (1) में निर्दिष्ट व्यक्ति या व्यक्तियों द्वारा किया जाएगा; और
(ग) प्राधिकरण के स्वामित्वाधीन या नियंत्रणाधीन सभी संपत्तियां, उपधारा (3) के अधीन प्राधिकरण का पुनर्गठन किए जाने तक केन्द्रीय सरकार में निहित होंगी ।
(3) केन्द्रीय सरकार, उपधारा (1) के अधीन जारी अधिसूचना में विनिर्दिष्ट अधिक्रमण की अवधि की समाप्ति की तारीख को या उससे पूर्व प्राधिकरण को, उसके नए अध्यक्ष और अन्य सभी पूर्णकालिक सदस्यों और अंशकालिक सदस्यों की नई नियुक्ति करके पुनर्गठित करेगी और ऐसी दशा में ऐसे किसी व्यक्ति को, जिसने उपधारा (2) के खंड (क) के अधीन अपना पद रिक्त किया हो, धारा 20च की उपधारा (3) के उपबंधों के अधीन रहते हुए, शेष अवधि हेतु पुनः नियुक्ति के लिए निरर्हित नहीं माना जाएगा ।
(4) केन्द्रीय सरकार उपधारा (1) के अधीन जारी अधिसूचना की एक प्रति और इस धारा के अधीन की गई किसी कार्रवाई और ऐसी कार्रवाई का कारण बनने वाली परिस्थितियों की एक पूर्ण रिपोर्ट तैयारी कराएगी, जिसे, शीघ्रातिशीघ्र, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखा जाएगा ।
20ण. सिविल न्यायालय की अधिकारिता का वर्जन-किसी ऐसे मामले के संबंध में, जिसका अवधारण करने के लिए प्राधिकरण इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन सशक्त है, किसी सिविल न्यायालय की कोई अधिकारिता नहीं होगी और इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन प्रदत्त किसी शक्ति के अनुसरण में की गई या की जाने वाली किसी कार्रवाई के संबंध में किसी न्यायालय या अन्य प्राधिकरण द्वारा कोई व्यादेश अनुदत्त नहीं किया जाएगा ।
20त. वार्षिक रिपोर्ट-(1) प्राधिकरण प्रत्येक वर्ष में एक बार, ऐसे प्ररूप में और ऐसे समय पर, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विहित किया जाए, एक वार्षिक रिपोर्ट तैयार करेगा, जिसमें प्राधिकरण के पूर्ववर्ष के सभी क्रियाकलापों का संपूर्ण विवरण दिया जाएगा ।
(2) उपधारा (1) के अधीन प्राप्त रिपोर्ट की एक प्रति, उसे प्राप्त करने के पश्चात्, यथासंभवशीघ्र, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखी जाएगी ।
20थ. सूचना मांगने की शक्ति-जहां केन्द्रीय सरकार ऐसा करना समीचीन समझती है, वहां वह लिखित आदेश द्वारा, यथास्थिति, प्राधिकरण या सक्षम प्राधिकारी से, ऐसे प्ररूप और ऐसी रीति में, जो विहित की जाए, उसके कार्यों के संबंध में लिखित में ऐसी सूचना मांग सकेगी, जो केन्द्रीय सरकार अपेक्षा करे ।]
पुरातत्वीय उत्खनन
21. संरक्षित क्षेत्रों में उत्खनन-पुरातत्व अधिकारी या इस निमित्त उसके द्वारा प्राधिकृत अधिकारी या इस अधिनियम के अधीन इस निमित्त दी गई अनुज्ञप्ति धारण करने वाला कोई व्यक्ति (जिसे एतस्मिन्पश्चात् अनुज्ञप्तिधारी कहा गया है), कलक्टर और स्वामी को लिखित सूचना देने के पश्चात् किसी संरक्षित क्षेत्र में प्रवेश कर सकेगा और उसमें उत्खनन कर सकेगा ।
22. संरक्षित क्षेत्रों से भिन्न क्षेत्रों में उत्खनन-जहां कि पुरातत्व अधिकारी के पास यह विश्वास करने का कारण है कि किसी क्षेत्र में, जो संरक्षित क्षेत्र नहीं है, ऐतिहासिक या पुरातत्वीय महत्व में भग्नावशेष या परिशेष हैं, वहां कलक्टर और स्वामी को लिखित सूचना देने के पश्चात् वह या उसके द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत अधिकारी, उस क्षेत्र में प्रवेश कर सकेगा और उसमें उत्खनन कर सकेगा ।
23. उन पुरावशेषों आदि का अनिवार्य क्रय जिनका पता उत्खनन संक्रियाओं के दौरान चलता है-(1) जहां कि धारा 21 या धारा 22 के अधीन किसी क्षेत्र में किए गए उत्खननों के परिमाणस्वरूप किन्हीं पुरावशेषों का पता चलता है, वहां, यथास्थिति, पुरातत्व-अधिकारी या अनुज्ञप्तिधारी,-
(क) यथासाध्य शीघ्र ऐसे पुरावशेषों की परीक्षा करेगा और केन्द्रीय सरकार को ऐसी रीति से और ऐसी विशिष्टियों वाली रिपोर्ट निवेदित करेगा, जैसी विहित की जाए;
(ख) उत्खनन संक्रियाओं की समाप्ति पर, उस भूमि के स्वामी को, जिसमें ऐसे पुरावशेषों का पता चला है, ऐसे पुरावशेषों की प्रकृति की लिखित सूचना देगा ।
(2) जब तक कि उपधारा (3) के अधीन ऐसे पुरावशेषों के [अनिवार्य अर्जनट के लिए आदेश नहीं कर दिया जाता तब तक, यथास्थिति, पुरातत्व-अधिकारी या अनुज्ञप्तिधारी उन्हें ऐसी सुरक्षित अभिरक्षा में रखेगा, जैसी वह ठीक समझे ।
(3) उपधारा (1) के अधीन रिपोर्ट की प्राप्ति पर, केन्द्रीय सरकार [ऐसे किन्हीं पुरावशेषों के अनिवार्य अर्जनट के लिए आदेश कर सकेगी ।
(4) जब कि उपधारा (3) के अधीन किन्हीं पुरावशेषों के 1[अनिवार्य अर्जनट के लिए आदेश किया जाता है, तो ऐसे पुरावशेष आदेश की तारीख को और से केन्द्रीय सरकार में निहित हो जाएंगे ।
24. पुरातत्वीय प्रयोजनों के लिए उत्खनन आदि-कोई भी राज्य सरकार किसी ऐसे क्षेत्र में, जो संरक्षित क्षेत्र नहीं है, पुरातत्वीय प्रयोजनों के लिए किसी उत्खनन या उसी प्रकार की अन्य संक्रिया का भार केन्द्रीय सरकार के पूर्व अनुमोदन से और ऐसे नियमों या निदेशों के, यदि कोई हों, जो केन्द्रीय सरकार इस निमित्त बनाए या दे, अनुसार लेने के सिवाय नहीं लेगी और न किसी अन्य व्यक्ति को ऐसा भार लेने के लिए प्राधिकृत करेगी ।
पुरावशेषों का संरक्षण
25. पुरावशेषों का हटाया जाना नियंत्रित करने की केन्द्रीय सरकार की शक्ति-(1) यदि केन्द्रीय सरकार का यह विचार है, कि केन्द्रीय सरकार की मंजूरी के बिना कोई पुरावशेष या पुरावशेष वर्ग उस स्थान से, जहां वे हैं, नहीं हटाए जाने चाहिएं, तो केन्द्रीय सरकार, शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, यह निदेश दे सकेगी कि ऐसा कोई पुरावशेष या ऐसा कोई पुरावशेष वर्ग महानिदेशक की लिखित अनुज्ञा से हटाए जाने के सिवाय नहीं हटाया जाएगा ।
(2) उपधारा (1) के अधीन अनुज्ञा के लिए हर आवेदन ऐसे प्ररूप में होगा जैसा, और उसमें ऐसी विशिष्टियां होंगी जैसी विहित की जाएं ।
(3) अनुज्ञा देने से इंकार करने वाले आदेश से व्यथित व्यक्ति केन्द्रीय सरकार से अपील कर सकेगा, और उसका विनिश्चय अंतिम होगा ।
26. केन्द्रीय सरकार द्वारा पुरावशेषों का क्रय-(1) यदि केन्द्रीय सरकार को यह आशंका है कि धारा 25 की उपधारा (1) के अधीन निकाली गई किसी अधिसूचना में वर्णित किसी पुरावशेष के नष्ट हो जाने, हटाए जाने, क्षत हो जाने, दुरुपयोग में लाए जाने या क्षयग्रस्त होने दिए जाने का खतरा है या उसकी यह राय है कि उसके ऐतिहासिक या पुरातत्वीय महत्व के कारण ऐसे पुरावशेष को लोक स्थान में परिरक्षित करना वांछनीय है, तो केन्द्रीय सरकार [ऐसे पुरावशेष के अनिवार्य अर्जनट का आदेश कर सकेगी और तदुपरि कलक्टर [अर्जित किए जाने वालेट पुरावशेष के स्वामी को सूचना देगा ।
(2) जहां कि किसी पुरावशेष के बारे में उपधारा (1) के अधीन [अनिवार्य अर्जन] की सूचना दी जाती है, वहां ऐसा पुरावशेष सूचना की तारीख को और केन्द्रीय सरकार में निहित हो जाएगा ।
(3) इस धारा द्वारा दी गई 3[अनिवार्य अर्जनट की शक्ति का विस्तार सद्भावी धार्मिक आचारों के लिए वस्तुतः उपयोग में लाई जाने वाली किसी प्रतिमा या प्रतीक पर न होगा ।
प्रतिकर के सिद्धांत
27. हानि या नुकसान के लिए प्रतिकर-भूमि के किसी स्वामी या अधिभोगी को, जिसे ऐसी भूमि पर प्रवेश या उत्खनन या इस अधिनियम द्वारा प्रदत्त किसी अन्य शक्ति के प्रयोग के कारण कोई हानि, नुकसान या भूमि से होने वाले लाभों में कमी हुई है, ऐसी हानि, नुकसान या लाभों में कमी के लिए केन्द्रीय सरकार द्वारा प्रतिकर संदत्त किया जाएगा ।
28. बाजार-भाव या प्रतिकर का निर्धारण-(1) जहां किसी ऐसी संपत्ति के बाजार-भाव के, जिसे केन्द्रीय सरकार इस अधिनियम के अधीन ऐसे भाव पर क्रय करने के लिए सशक्त है या उस प्रतिकर के जो इस अधिनियम के अधीन की गई किसी बात के बारे में केन्द्रीय सरकार द्वारा संदत्त किया जाना है, बारे में कोई विवाद उद्भूत होता है वहां, भूमि अर्जन अधिनियम, 1894 (1894 का 1) की धाराओं 3, 5, 8 से 34, 45 से 47, 51 और 52 में जहां तक कि उन्हें लागू किया जा सके, उपबंधित रीति से अभिनिश्चित किया जाएगा :
परन्तु उक्त भूमि अर्जन अधिनियम के अधीन जांच करते समय कलक्टर की सहायता दो असेसर, जिनमें से एक केन्द्रीय सरकार द्वारा नामनिर्देशित सक्षम व्यक्ति होगा और एक स्वामी द्वारा, या स्वामी के ऐसे युक्तियुक्त समय के भीतर जो कलक्टर द्वारा इस निमित्त नियत किया जाए, असेसर नामनिर्देशित करने में असफल रहने की दशा में कलक्टर द्वारा नामनिर्देशित व्यक्ति होगा, करेंगे ।
[(2) प्रत्येक पुरावशेष के लिए, जिसकी बाबत धारा 23 की उपधारा (3) के अधीन या धारा 26 की उपधारा (1) के अधीन अनिवार्य अर्जन का आदेश किया गया है, प्रतिकर संदत्त किया जाएगा और ऐसे प्रतिकर के अवधारण और संदाय के संबंध में पुरावशेष तथा बहुमूल्य कलाकृति अधिनियम, 1972 (1972 का 52) की धारा 20 और 22 के उपबंध, यावत्शक्य, उसी प्रकार लागू होंगे, जैसे वे उक्त अधिनियम की धारा 19 के अधीन अनिवार्यतः अर्जित किसी पुरावशेष या बहुमूल्य कलाकृति के लिए प्रतिकर के अवधारण और संदाय के संबंध में लागू होते हैं ।]
प्रकीर्ण
29. शक्तियों का प्रत्यायोजन-केन्द्रीय सरकार, शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, यह निदेश दे सकेगी कि इस अधिनियम के द्वारा या अधीन उसे प्रदत्त की गई कोई भी शक्तियां, ऐसी शर्तों के अध्यधीन रहते हुए जो उस निदेश में विनिर्दिष्ट की जाएं-
(क) केन्द्रीय सरकार के अधीनस्थ ऐसे अधिकारी या प्राधिकारी द्वारा भी, अथवा
(ख) ऐसी राज्य सरकार या राज्य सरकार के अधीनस्थ ऐसे अधिकारी या प्राधिकारी द्वारा भी, जो निदेश में विनिर्दिष्ट किया जाए,
प्रयोक्तव्य होंगी ।
30. शास्तियां-(1) जो कोई-
(i) किसी संरक्षित संस्मारक को नष्ट करेगा, हटाएगा, क्षत करेगा, परिवर्तित करेगा, विरुपित करेगा, खतरे में डालेगा या उसका दुरुपयोग करेगा, अथवा
(ii) किसी संरक्षित संस्मारक का स्वामी या अधिभोगी होते हुए धारा 9 की उपधारा (1) या धारा 10 की उपधारा (1) के अधीन किए गए आदेश का उल्लंघन करेगा, अथवा
(iii) किसी संरक्षित संस्मारक से कोई रूपकृति, नक्काशी, प्रतिमा, निम्नउद्भृति, उत्कीर्ण लेख या इसी प्रकार की कोई अन्य वस्तु हटाएगा, अथवा
(iv) धारा 19 की उपधारा (1) के उल्लंघन में कोई कार्य करेगा, वह [कारावास से, जो दो वर्ष तक का हो सकेगा,ट या 1[जुर्माने से, जो एक लाख रुपए तक का हो सकेगा,] या दोनों से, दण्डनीय होगा ।
(2) जो कोई व्यक्ति, धारा 25 की उपधारा (1) के अधीन निकाली गई किसी अधिसूचना के उल्लंघन में किसी पुरावशेष को हटाएगा, वह 1[कारावास से, जो दो वर्ष तक का हो सकेगा या जुर्माने से, जो एक लाख रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से] दण्डनीय होगा, और किसी ऐसे उल्लंघन के लिए किसी व्यक्ति को दोषसिद्ध करने वाला न्यायालय ऐसे व्यक्ति को आदेश द्वारा निदेश दे सकेगा कि वह उस पुरावशेष को उस स्थान पर पुनरुद्धार करे जहां से वह हटाया गया था ।
[30क. प्रतिषिद्ध क्षेत्र में निर्माण आदि के लिए दंड-जो कोई, उस तारीख को और उसके पश्चात्, जिसको प्राचीन संस्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष (संशोधन और विधिमान्यकरण) विधेयक, 2010 को राष्ट्रपति की अनुमति प्राप्त होती है, किसी प्रतिषिद्ध क्षेत्र में कोई निर्माण करता है, वह दो वर्ष से अनधिक के कारावास से या ऐसे जुर्माने से, जो एक लाख रुपए तक का हो सकेगा या दोनों से, दंडनीय होगा ।
30ख. विनियमित क्षेत्र में निर्माण आदि के लिए दंड-जो कोई, उस तारीख को और उसके पश्चात्, जिसको प्राचीन संस्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष (संशोधन और विधिमान्यकरण) विधेयक, 2010 को राष्ट्रपति की अनुमति प्राप्त होती है, सक्षम प्राधिकारी की पूर्व अनुज्ञा के बिना या सक्षम प्राधिकारी द्वारा दी गई अनुज्ञा के उल्लंघन में किसी विनियमित क्षेत्र में कोई निर्माण करता है, वह दो वर्ष से अनधिक के कारावास से या ऐसे जुर्माने से, जो एक लाख रुपए तक का हो सकेगा या दोनों से, दंडनीय होगा ।
30ग. सरकार के अधिकारियों द्वारा अपराध-यदि केन्द्रीय सरकार का कोई अधिकारी, ऐसे किसी कार्य या बात को करने के लिए कोई करार करता है या उससे उपमत होता है, उससे प्रविरत रहता है, ऐसी कार्रवाई या किसी बात की अनुज्ञा देता है, उसे छिपाता है या मौनानुमति देता है, जिसके द्वारा किसी प्रतिषिद्ध क्षेत्र या विनियमित क्षेत्र में कोई निर्माण या पुनःनिर्माण किया जाता है, तो वह ऐसे कारावास से, जो तीन वर्ष तक का हो सकेगा या जुर्माने से, या दोनों से, दंडनीय होगा ।]
31. अपराधों के विचारण की अधिकारिता-प्रेसिडेन्सी मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट के न्यायालय से अवर कोई भी न्यायालय इस अधिनियम के अधीन के किसी अपराध का विचारण नहीं करेगा ।
32. कतिपय अपराधों का संज्ञेय होना-दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1898 (1898 का 5) में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी यह है कि धारा 30 की उपधारा (1) के खण्ड (i) या खण्ड (iii) के अधीन का अपराध उस संहिता के अर्थ के भीतर संज्ञेय अपराध समझा जाएगा ।
33. जुर्माने के संबंध में विशेष उपबंध-दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1898 (1898 का 5) की धारा 32 में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी यह है कि राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त विशेष रूप से सशक्त प्रथम वर्ग के किसी मजिस्ट्रेट के लिए और किसी प्रेसिडेन्सी मजिस्ट्रेट के लिए यह विधिपूर्ण होगा कि वह किसी ऐसे अपराध के लिए, जो इस अधिनियम के अधीन दो हजाए रुपए से अधिक के जुर्माने से दण्डनीय है, दोषसिद्ध किए गए किसी व्यक्ति पर दो हजार रुपए से अधिक जुर्माने का दण्डादेश पारित करे ।
34. सरकार को शोध्य रकमों की वसूली-इस अधिनियम के अधीन किसी व्यक्ति से सरकार को शोध्य कोई रकम महानिदेशक या उसके द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किसी पुरातत्व अधिकारी द्वारा दिए गए प्रमाणपत्र पर, ऐसी ही रीति से वसूल की जाएगी जैसे भू-राजस्व की बकाया वसूल की जाती है ।
35. प्राचीन संस्मारक आदि जो राष्ट्रीय महत्व के नहीं रह गए हैं-यदि केन्द्रीय सरकार की यह राय है कि कोई प्राचीन और ऐतिहासिक संस्मारक या पुरातत्वीय स्थल और अवशेष जिसका इस अधिनियम के द्वारा या अधीन राष्ट्रीय महत्व का होना घोषित किया गया है, राष्ट्रीय महत्व का नहीं रह गया है, तो वह शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा यह घोषित कर सकेगी कि, यथास्थिति, वह प्राचीन और ऐतिहासिक संस्मारक या पुरातत्वीय स्थल और अवशेष इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए राष्ट्रीय महत्व का नहीं रहा गया है ।
[35क. संरक्षित प्रतिषिद्ध क्षेत्र और विनियमित क्षेत्रों का सर्वेक्षण करने की बाध्यता-(1) महानिदेशक, ऐसे समय के भीतर, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विनिर्दिष्ट किया जाए, विस्तृत स्थल योजनाओं के प्रयोजन के लिए सभी प्रतिषिद्ध क्षेत्रों और विनियमित क्षेत्रों के संबंध में सर्वेक्षण करेगा या सर्वेक्षण कराएगा ।
(2) उपधारा (1) में निर्दिष्ट ऐसे सर्वेक्षण के संबंध में रिपोर्ट, केन्द्रीय सरकार और प्राधिकरण को भेजी जाएगी ।
35ख. 16 जून, 1992 को या उसके पश्चात् अप्राधिकृत निर्माणों की पहचान-(1) महानिदेशक, ऐसे समय के भीतर, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा विनिर्दिष्ट किया जाए, सभी प्रतिषिद्ध क्षेत्रों और विनियमित क्षेत्रों में 16 जून, 1992 को या उसके पश्चात् किए गए सभी निर्माणों (चाहे वे किसी भी प्रकृति के हों) की पहचान करेगा या पहचान कराएगा और तत्पश्चात्, समय-समय पर उनके संबंध में एक रिपोर्ट केन्द्रीय सरकार को प्रस्तुत करेगा ।
(2) महानिदेशक को, उपधारा (1) के प्रयोजनों के लिए, स्थानीय निकायों और अन्य प्राधिकारियों से सूचना मांगने की शक्ति होगी ।]
36. भूलों, आदि को शुद्ध करने की शक्ति-इस अधिनियम के द्वारा या अधीन राष्ट्रीय महत्व के घोषित किए गए किसी प्राचीन संस्मारक या पुरातत्वीय स्थल और अवशेष के वर्णन में कोई लिपिकीय भूल, प्रत्यक्ष गलती या आकस्मिक भूल या लोप से उद्भूत कोई गलती, केन्द्रीय सरकार द्वारा शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, किसी भी समय शुद्ध की जा सकेगी ।
37. इस अधिनियम के अधीन की गई कार्रवाई के लिए परित्राण-प्रतिकर के लिए कोई भी वाद तथा कोई भी दाण्डिक कार्यवाही, इस अधिनियम द्वारा प्रदत्त की गई किसी शक्ति के प्रयोग में किए गए या सद्भावपूर्वक किए जाने के लिए आशयित किसी कार्य के बारे में किसी लोक सेवक के विरुद्ध न होगी ।
38. नियम बनाने की शक्ति-(1) केन्द्रीय सरकार इस अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए नियम, शासकीय राजपत्र में अधिसूचना द्वारा और पूर्व प्रकाशन की शर्त के अध्यधीन रहते हुए, बना सकेगी ।
(2) विशिष्टतः और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियम निम्नलिखित सभी विषयों के लिए या उनमें से किसी के लिए उपबंध कर सकेंगे, अर्थात् :-
(क) संरक्षित संस्मारक के समीप खनन, खदान क्रिया, उत्खनन, विस्फोट या इसी प्रकार की किसी अन्य संक्रिया का प्रतिषेध या अनुज्ञापन द्वारा या अन्यथा विनियमन या ऐसे संस्मारक से लगी हुई भूमि पर भवनों का सन्निर्माण और अप्राधिकृत निर्माणों का हटाया जाना;
(ख) संरक्षित क्षेत्रों में पुरातत्वीय प्रयोजनार्थ उत्खनन करने के लिए अनुज्ञप्तियों और अनुज्ञाओं का दिया जाना, वे प्राधिकारी जिनके द्वारा और वे निर्बन्धन और शर्तें जिनके रहते हुए, ऐसी अनुज्ञप्तियां दी जा सकेंगी, अनुज्ञप्तिधारी से प्रतिभूतियों का लिया जाना और वह फीस जो ऐसी अनुज्ञप्तियों के लिए ली जा सकेगी;
(ग) किसी संरक्षित संस्मारक तक जनता की पहुंच का अधिकार और वह फीस, यदि कोई हो, जो उसके लिए ली जानी है;
[(गक) धारा 4क की उपधारा (1) के अधीन राष्ट्रीय महत्व के रूप में घोषित प्राचीन संस्मारकों या पुरातत्वीय स्थलों और अवशेषों के प्रवर्ग;
(गख) धारा 20घ की उपधारा (1) के अधीन अनुज्ञा प्रदान करने के लिए आवेदन करने की रीति;
(गग) धारा 20घ की उपधारा (2) के अधीन ऐसे आवेदनों का प्रवर्ग, जिनके संबंध में अनुज्ञा प्रदान की जा सकेगी और ऐसे आवेदन, जिन्हें प्राधिकरण को उसकी सिफारिश के लिए निर्दिष्ट किया जाएगा;
(गघ) धारा 20ङ की उपधारा (2) के अधीन ऐसे अन्य विषय, जिनके अन्तर्गत विरासत नियंत्रण, जैसे कि उत्थापन, पुराभाग, जल निकास प्रणालियां, सड़कें और सेवा अवसंरचना (जिसके अंतर्गत बिजली के खंभे, जल और सीवर पाइपलाइनें भी हैं);
(गङ) धारा 20ङ की उपधारा (3) के अधीन प्रत्येक प्रतिषिद्ध क्षेत्र और विनियमित क्षेत्र के संबंध में विस्तृत स्थल योजनाएं तैयार करने की रीति और वह समय, जिसके भीतर ऐसी विरासत संबंधी उपविधियों को तैयार किया जाएगा और ऐसी प्रत्येक विरासत संबंधी उपविधि में सम्मिलित की जाने वाली विशिष्टियां;
(गच) धारा 20ज की उपधारा (1) के अधीन प्राधिकरण के पूर्वकालिक अध्यक्ष और पूर्णकालिक सदस्यों को संदेय वेतन और भत्ते और उनकी सेवा के अन्य निबंधन और शर्तें या अंशकालिक सदस्यों को संदेय फीस या भत्ते;
(गछ) धारा 20त के अधीन वह प्ररूप और वह समय, जिसमें प्राधिकरण अपने पूर्ववर्ष के सभी क्रियाकलापों का पूर्व विवरण देते हुए एक वार्षिक रिपोर्ट तैयार करेगा;
(गज) धारा 20थ के अधीन वह प्ररूप और रीति, जिसमें प्राधिकरण और सक्षम प्राधिकारी केन्द्रीय सरकार को सूचना प्रस्तुत करेंगे ।]
(घ) धारा 23 की उपधारा (1) के खण्ड (क) के अधीन किसी पुरातत्व-अधिकारी या अनुज्ञप्तिधारी की रिपोर्ट का प्ररूप और विषयवस्तु;
(ङ) वह प्ररूप जिसमें धारा 19 या धारा 25 के अधीन अनुज्ञा के लिए आवेदन किए जा सकेंगे और वे विशिष्टियां जो उनमें होनी चाहिएं;
(च) इस अधिनियम के अधीन की अपीलों का प्ररूप और वह रीति जिसमें और वह समय जिसके भीतर वे की जा सकेंगी;
(छ) इस अधिनियम के अधीन के किसी आदेश या सूचना की तामील की रीति;
(ज) वह रीति जिसमें पुरातत्वीय प्रयोजनों के लिए उत्खनन या ऐसी ही अन्य संक्रियाएं की जा सकेंगी;
(झ) कोई अन्य विषय जो विहित किया जाना है, या विहित किया जाए ।
(3) इस धारा के अधीन बनाया गया कोई नियम यह उपबंध कर सकेगा कि उसका भंग-
(i) उपधारा (2) के खण्ड (क) के प्रति निर्देश से बनाए गए नियम की दशा में, कारावास से, जो तीन मास तक का हो सकेगा, या जुर्माने से, जो पांच हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से;
(ii) उपधारा (2) के खण्ड (ख) के प्रति निर्देश से बनाए गए नियम की दशा में, जुर्माने से, जो पांच हजार रुपए तक का हो सकेगा,
(iii) उपधारा (2) के खण्ड (ग) के प्रति निर्देश से बनाए गए नियम की दशा में, जुर्माने से, जो पांच सौ रुपए तक का हो सकेगा,
दण्डनीय होगा
[(4) इस अधिनियम के अधीन केन्द्रीय सरकार द्वारा बनाया गया प्रत्येक नियम बनाए जाने के पश्चात्, यथाशीघ्र, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब वह ऐसी कुल तीस दिन की अवधि के लिए सत्र में हो, एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकती है, रखा जाएगा और यदि उस सत्र के या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्र के ठीक बाद के सत्र के अवसान के पूर्व दोनों सदन उस नियम में कोई परिवर्तन करने के लिए सहमत हो जाएं, या दोनों सदन इस बात से सहमत हो जाएं, कि वह नियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो ऐसा नियम, यथास्थिति, तत्पश्चात् केवल ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा या उसका कोई प्रभाव नहीं होगा, तथापि, उस नियम के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से पहले उसके अधीन की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा ।]
39. निरसन और व्यावृत्ति-(1) एनशियेन्ट एण्ड हिस्टोरिकल मान्यूमेन्ट्स एण्ड आर्कियोलाजिकल साइट्स एण्ड रिमेन्स डिक्लेरेशन आफ नेशनल इम्पार्टेंस ऐक्ट, 1951 (1951 का 71) और राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 (1956 का 37) की धारा 126 एतद्द्वारा निरसित किए जाते हैं ।
(2) प्राचीन संस्मारक परिरक्षण अधिनियम, 1904 (1904 का 7) उन प्राचीन और ऐतिहासिक संस्मारकों तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेषों के संबंध में, जो इस अधिनियम के द्वारा या अधीन राष्ट्रीय महत्व के घोषित किए गए हैं, इस अधिनियम के प्रारंभ से पूर्व की गई या लोप की गई बातों की बाबत प्रभावशील रहने के सिवाय, प्रभावशील न रहेगा ।
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